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समकालीन दुनिया में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता विषय पर संगोष्ठी का आयोजन

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हरिद्वार, 3 अक्टूबर . गुरुकुल कांगड़ी सम विश्वविद्यालय के प्रौद्योगिकी संकाय में समकालीन दुनिया में गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में छात्रों और शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी देखी गई, जिसमें गांधीवादी सिद्धांतों पर आधुनिक संदर्भ में चर्चा और बहस के लिए एक खुला मंच प्रदान किया गया.

संकायाध्यक्ष प्रो. विपुल शर्मा ने इस बात पर प्रकाश डाला कि महात्मा गांधी हमेशा एक कालजयी प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे. उन्होंने बताया कि गांधी जी की सत्य और नैतिकता की शिक्षा न केवल राजनीतिक चर्चा में लागू होती हैं, बल्कि हमारे दैनिक जीवन में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं. उन्होंने गांधी जी के जीवन से उदाहरण देकर दिखाया कि ये शिक्षाएं आज भी लोगों का मार्गदर्शन कर रही हैं.

सहायक प्रो. प्रवीण के. पांडे ने हिंसा और संघर्ष से जुड़ी वैश्विक जटिलताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया और बताया कि अक्सर यह वैश्विक हथियार उद्योग के हित में होता है कि दुनिया हिंसा में उलझी रहे. आइंस्टीन के शब्दों को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि आने वाली पीढ़ियों को शायद ही यकीन हो कि ऐसा कोई व्यक्ति मांस और रक्त में इस पृथ्वी पर चला था. उन्होंने बताया कि गांधी जी का अहिंसा का संदेश आज पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है.

प्रो. एमएम तिवारी ने आज की तेजी से बदलती दुनिया में आत्मरक्षा के महत्व पर जोर दिया और प्राचीन भारतीय दार्शनिक ग्रंथों से उदाहरण देकर बताया कि आत्मनिर्भरता और तत्परता महत्वपूर्ण गुण हैं.

कार्यक्रम के संयोजक प्रशांत कौशिक ने बताया कि गांधी जी के विरोधी भी उनसे साहस, ईमानदारी और सिद्धांतों के प्रति अडिग प्रतिबद्धता जैसे गुण सीख सकते हैं. उन्होंने छात्रों को इन मूल्यों को अपने व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन में अपनाने के लिए प्रेरित किया.

बहस सत्र में हर्षित, अंशु, शिखर, आर्यन, अथर्व, विशाल, अश्विनी, लक्ष्मण, अमन, और दिग्विजय सिंह जैसे छात्रों ने सक्रिय भाग लिया, जिन्होंने गांधीवादी विचारधारा की प्रासंगिकता पर विविध दृष्टिकोण प्रस्तुत किए. विचारों के इस आदान-प्रदान ने चर्चा को समृद्ध किया और छात्रों को यह सोचने पर मजबूर किया कि गांधीवादी मूल्य जैसे अहिंसा, सामाजिक असमानता, और अस्थिरता जैसे आधुनिक चुनौतियों में कैसे लागू होते हैं.

/ डॉ.रजनीकांत शुक्ला

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