Top News
Next Story
NewsPoint

क्रांतिकारी शहीद भगत सिंह - डा० नीलिमा मिश्रा

Send Push

utkarshexpress.com - भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पश्चिमी पंजाब ( पाकिस्तान) के बंगा ग्राम में एक सिख परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था। यह एक किसान परिवार था। 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड का बहुत गहरा असर 12 वर्ष के भगत सिंह पर पड़ा उनके दिल में मातृभूमि को स्वतंत्र कराने की आग जल उठी ।1920 में लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गए। महात्माय गांधी द्वारा चलाए जा रहे अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन में भाग लेने लगे, लेकिन भगत सिंह को तब गहरा आघात लगा जब 1922 में चौरा-चौरा हत्यांकांड के बाद गांधीजी ने अचानक असहयोग आंदोलन को समाप्त कर दिया और किसानों का साथ नहीं  दिया तब भगतसिंह क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद की ओर झुके और उनके नेतृत्व में गठित हुई गदर पार्टी की सदस्यता लेकर उनके साथ काम करने लगे ।कालांतर में इस  दल का नाम ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ (एच एस आर ए) रखा गया। इस संगठन का उद्देश्य था क्रांतिकारी नवयुवकों को तैयार करना जो देश की ख़ातिर मर मिटने को तैयार हों । 
उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज़-ए-ज़फ़ा क्या है? 
हमें यह शौक है देखें, सितम की इन्तहा क्या है?
बहुचर्चित काकोरी कांड में 4 क्रांतिकारियों को फाँसी और 16 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी जिससे भगतसिंह के दिल में क्रांति की आग और भड़का गई । भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज़ अफसर जे पी सांडर्स को मारा था। इसमें चन्द्रशेखर आज़ाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। इस हत्याकांड को अंजाम देकर उन्होंने लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया था । उसके बाद 


क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड, दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेंट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज़ों की बहरी सरकार को जगाने के लिये बम और पर्चे फेंके थे।वहाँ “इंक़लाब ज़िंदाबाद”  का नारा लगाया और डटे रहे। उन्हें पकड़ लिया गया, भगतसिंह को जेल भेज दिया गया जहाँ वह क़रीब दो साल रहे।जेल में रहने के दौरान अपने लेखन कार्य के द्वारा उन्होंने अपने क्रांतिकारी विचारों को जन-जन तक पहुँचाया। उन्हें हिन्दी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा का ज्ञान था। भगत सिंह अच्छे वक्ता, पाठक, लेखक और सम्पादक थे। उन्होंने अकाली और कीर्ति नामक दो अख़बारों का सम्पादन भी किया था।
उनका कहना था कि “आपका जीवन तभी सफल हो सकता है जब आपका निश्चित लक्ष्य हो और आप उनके लिए पूरी तरह से समर्पित हो।”  जेल की सजा सुनाए जाने के बाद उन्होंने कहा था कि “मुझे जेल भेज दो, लेकिन मेरा दिमाग कैद नहीं किया जा सकता।”  

भगत सिंह न केवल क्रांतिकारी देशभक्त ही थे वरन  एक अध्ययनशीरल विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, महान मनुष्य थे। उन्होंने 23 वर्ष की छोटी-सी आयु में ही देश के लिए अपने को क़ुर्बान कर दिया। वह मार्क्स की वामपंथी विचारधारा से भी प्रभावित थे।लेकिन समाजवाद के समर्थक थे। उन्होंने फ्रांस, आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था।उन्होंने लिखा कि ‘मजदूरों का शोषण करने वाला चाहें एक भारतीय ही क्यों न हो, वह उनका शत्रु है।’ उन्होंने जेल में अंग्रेज़ी में एक लेख भी लिखा जिसका शीर्षक था 'मैं नास्तिक क्यों हूं'?  जेल में भगत सिंह व उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतीन्द्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे।
23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फांसी दे दी गई। आज भी भगतसिंह युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत हैं क्रांति के प्रतीक हैं ऐसे सच्चे क्रांतिकारी को शत शत नमन ! वंदे मातरम्!
शहीदों की विरासत को हमें पूरा बचाना है ।
हमें अपने वतन की आन पर सब कुछ लुटाना है।
फ़िदा जो कर गए हैं जानो- तन इस देश की ख़ातिर,
शहीदों की मज़ारों पर चरागों को जलाना है।।
- डा० नीलिमा मिश्रा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश

Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now