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Ajmer कचरे से बिजली बनाने की कोई योजना या दृष्टिकोण नहीं

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अजमेर न्यूज़ डेस्क , अजमेर   स्मार्ट सिटी अजमेर कचरे से बिजली बनाने के मामले में पीछे है।सिर्फ डोर-टू-डोर कचरा एकत्रित कर सेदरिया ट्रेंचिंग ग्राउंड तक पहुंचाने भर का काम हो रहा है। जबकि देश के कई शहरों में कचरे से बिजली उत्पादन किया जा रहा है। शहर में प्रतिमाह प्लास्टिक की थैलियों, कागज, कांच, टायर, पेड़-पौधों के पत्तों, फल-सब्जी के छिलके, घास-फूस, गत्ते, गुटखे के पाउच और अन्य रूप में करीब 45 टन कचरा निकलता है। 70 प्रतिशत एकत्रित कचरे को सेदरिया ट्रेंचिंग ग्राउंड पहुंचाया जाता है। जबकि करीब 30 प्रतिशत कचरा खाली प्लॉट, मैदानों, नालों में फैला रहता है।

ऐसे बनती है बिजली

कचरे से बिजली उत्पादन की प्रक्रिया दो चरण में होती है। कचरे को जलाने से निकलने वाली हीट बॉयलर में पानी को भाप में बदलती है। उच्च दबाव वाली भाप टर्बाइन जनरेटर के ब्लेड को घुमाकर बिजली उत्सर्जित करती है। दूसरी प्रक्रिया में ज्वलनशील कचरे को भट्टे में डाला जाता है। उसके जलने से उत्पन्न उष्मा से भट्टे में लगी सोलर प्लेट गर्म होती है। उससे बिजली आपूर्ति शुरू होती है।

केंद्र-राज्य से मिलती है राशि

स्वच्छ भारत मिशन (2.0) में कचरा मुक्त शहरों के लिए राष्ट्रीय व्यवहार परिवर्तन संचार फ्रेमवर्क लॉन्च किया गया है। कचरे से बिजली उत्सर्जन के लिए केंद्र और राज्य सरकार आधी-आधी राशि देती है। प्लांट बनाने के लिए करीब 150 से 200 करोड़ रुपए व्यय होते हैं। कई राज्यों में पीपीपी मॉडल पर भी प्लांट लगाए गए हैं।

नहीं बना रहे कचरे से बिजली

देश में जबलपुर, भोपाल, रीवा, उज्जैन, जोधपुर, जमवा रामगढ़ रोड, तमिलनाडु के शिवगंगा जिले के कंजिरांगल गांव सहित कई शहरों में उत्सर्जित कचरे से बिजली उत्पादन हो रहा है। लेकिन स्मार्ट सिटी अजमेर में इसके लिए कोई विजन और प्लानिंग ही नहीं है।

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