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Jhunjhunu जिन्हें अपनों का नसीब नहीं होता कंधा, उनके मसीहा बने युवा

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झुंझुनू न्यूज़ डेस्क, कहा जाता है कि अंतिम संस्कार पूर्ण विधि-विधान के साथ किया जाना चाहिए। लेकिन कई लोगों को मरने के बाद अपनों का कंधा भी नसीब नहीं हो पाता है। ऐसी लावारिस लाशों के दाह संस्कार का बीड़ा उठा रखा है कि गो-संवर्धन संस्थान ने। लावारिस लाश मिलने पर पहले उसका हिन्दू रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाता है। बाद में अस्थियों को हरिद्वार में विर्सजन भी किया जाता है।कोरोना महामारी के दौरान कई लावारिश लाशों का बिना किसी क्रियाक्रम के अंतिम संस्कार होते देखा तो गो-संवर्धन संस्थान से जुड़े युवाओं में यह भाव जागा कि जिनका कोई नहीं, उन्हें अपना मानते हुए पूरी रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा। तब से यह सिलसिला अनवरत चल रहा है। युवाओं की यह टीम अब तक कई लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करवा चुकी है।

प्रशासन की मंजूरी से करते हैं कार्य

टीम के प्रवीण कुमार स्वामी ने बताया कि पांच साल पहले उन्होंने गोवंश की रक्षा के लिए गो-संवर्धन संस्थान का गठन किया। इसका मकसद गोवंश व कमजोर वर्ग की मदद करना था। चार-पांच युवाओं से शुरू की गई इस संस्था में अब एक हजार कार्यकर्ताओं की टीम है। लावारिस लाश मिलने के बाद कुछ दिन तक उसकी शिनाख्ती नहीं होती है तो प्रशासन लाश को संस्था के सुपुर्द कर देता है। इसके बाद हमारी टीम हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पिंडदान कर अंतिम संस्कार करती है और अस्थियों को हरिद्वार में विर्सजन किया जाता है।

टीम खुद वहन करती है खर्चा

क्रियाकर्म से लेकर अस्थि विसर्जन तक होने वाले खर्चे को युवा खुद ही वहन करते हैं। टीम में शामिल वेदप्रकाश महनसरिया, देवेंद्र मोहन छक्कड़, मोतीलाल नायक, ताराचंद कुमावत, रामशरण वैष्णव, तुलसी स्वामी, कपित हिसारिया, पूनित पुरोहित, नवीन , सोनू पुरोहित, राकेश समेत सैकड़ों की संख्या में युवा इस नेक कार्य को अंजाम दे रहे हैं।

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