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कहानी दो सैनिकों की, जिनके शव 56 साल बाद आए, एक के भतीजे ने कहा- ज़िंदा होते तो ये मेरे पिता होते

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ASIF ALI टी-शर्ट में नारायण सिंह के भतीजे जयवीर सिंह

संभव है कि इस कहानी को पढ़ते हुए आपकी आँखें नम हो जाएं. यह कहानी एक त्रासदी से जन्म लेती है और 56 सालों तक रहस्य बना रहता है. लेकिन जब रहस्य से पर्दा उठता है तो इंतज़ार करने वाले ही ज़िंदा नहीं बचते हैं.

इंतज़ार तो कइयों को था लेकिन बसंती देवी नहीं रहीं, जिनकी शादी नारायण सिंह बिष्ट से 15 साल की उम्र में हो गई थी. इंतज़ार की घड़ी इतनी लंबी हुई कि पति के चचेरे भाई के साथ ज़िंदगी गुज़ारनी पड़ी.

लेकिन कहानी की शुरुआत थॉमस चेरियन से. इस परिवार ने 56 साल आठ महीने का लंबा इंतज़ार किया था.

सेना के एक विमान दुर्घटना में मारे गए केरल के एक सैनिक के भाई-बहनों को सूचना मिली कि उनका शव मिल गया है तो लगा कि इस परिवार को ज़िंदगी में सब कुछ मिल गया है.

भारतीय वायुसेना के इस सैनिक का नाम था थॉमस चेरियन. चेरियन के साथ ही पायोनियर्स कोर के सिपाही मलखान सिंह, आर्मी मेडिकल कोर के नारायण सिंह और हरियाणा के रेवाड़ी के सिपाही मुंशीराम के शव बरामद किए गए हैं.

सात फ़रवरी 1968 को एएन-12-बीएल-534 विमान हिमाचल में रोहतांग दर्रे के पास क्रैश हो गया था. उसमें ये 102 सैनिक सवार थे.

केरल के पथनमथिट्टा में एलनथूर का ओदालिल परिवार ने थॉमस चेरियन को हर वक़्त याद रखा था. यहाँ तक कि जब परिवार में ख़ुशी का कोई क्षण आता तो इसके सदस्य सोचते थे, ‘’काश! इस मौक़े पर थॉमस हमारे साथ होते.’’

image IMRAN QURESHI थॉमस चेरियन का शव विमान से उतारते सैनिक image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ करें

थॉमस चेरियन को 22 साल की उम्र में लेह में अपनी पहली फील्ड पोस्टिंग मिली थी. वो भारतीय वायु सेना के परिवहन विमान एएन-12 में सवार थे. वो क्राफ्ट्समैन थे.

उनके साथ आर्मी मेडिकल कोर के सिपाही नारायण सिंह बिष्ट थे. वो उत्तराखंड के चमोली के रहने वाले थे. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के सिपाही मलखान सिंह भी उनके साथ थे. हरियाणा के रेवाड़ी के सिपाही मुंशीराम भी साथ में थे.

पिछले सप्ताह 56 साल बाद चेरियन, नारायण सिंह, मलखान सिंह और मुंशीराम के शव एक पर्वतारोही दल के अभियान के दौरान मिले.

'ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी में सबकुछ मिल गया' image IMRAN QURESHI थॉमस चेरियन का ताबूत जो खोला नहीं गया

1968 में विमान हादसा हुआ था तो चेरियन का पूरा परिवार मातम में डूब गया था.

सबसे ज़्यादा उनके माता-पिता ओ.एम. थॉमस और एलियाम्मा को सदमा लगा था. वो बेटे को जिंदा देखने की आस में चल बसे थे.

चेरियन के छोटे भाई ने बीबीसी हिन्दी से कहा, "जब हमें पता चला कि भारतीय सेना को चेरियन का शव मिल गया है तो ऐसा लगा जैसे किसी ने आख़िरकार लंबी सांस ली हो. 56 साल की घुटन अचानक से ग़ायब हो गई थी. हम सभी को ऐसा लग रहा था, जैसे हमें अब अपनी ज़िंदगी में सब कुछ मिल गया है."

पिछले सप्ताह भारतीय सेना के डोगरा स्काउट्स और तिरंगा माउंटेन रेस्क्यू (टीएमआर) के सदस्यों की एक संयुक्त टीम ने ढाका ग्लेशियर के पास समुद्र तल से लगभग 16,000 फीट की ऊंचाई पर चार सैनिकों के शव बरामद किए थे.

चेरियन परिवार की कहानी

चेरियन उस समय सिर्फ़ 18 साल के थे, जब वो अपने सबसे बड़े भाई के नक्शे-क़दम पर चलते हुए सेना में भर्ती हुए थे.

चेरियन के छोटे भाई थॉमस ने बताया, ''वह हमारे सबसे बड़े भाई से काफ़ी प्रभावित थे. मैं चेरियन से तीन साल छोटा था. बचपन में हम भाई से ज़्यादा दोस्त की तरह थे. हम चार भाई और एक बहन हैं. सेना में भर्ती होने के बाद वह दो बार घर आए थे. लेकिन मैं उनसे मिल नहीं पाया था. मैं उस समय मैं हरिद्वार में एक सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी में नौकरी कर रहा था.''

थॉमस बताते हैं कि जब विमान हादसा हुआ तो उनके पिता को एक तार मिला. पिताजी चेरियन के बारे में बहुत चिंतित थे क्योंकि वो लापता हो गए थे. अगर ये पता चल जाता कि चेरियन हादसे में मारे गए हैं तो अलग बात होती.

चेरियन के भाई ने कहा, ''बेटे की आस देखते-देखते हमारे पिता का 1990 में और माँ का 1998 में निधन हो गया.''

2003 में परिवार को सूचित किया गया कि चेरियन का नाम लापता सूची से बदलकर मृतक सूची में डाल दिया गया है.

ऐसा इसलिए क्योंकि एक पर्वतारोही दल को एक सैनिक का शव मिला था. इससे परिवार के लिए कुछ आस जगी लेकिन आगे और कुछ नहीं हुआ.

कई रिपोर्टों से इस बात की पुष्टि हुई थी 2003 में पहली बार जिस सैनिक का शव था वो बेली राम का था. इससे और शवों के मिलने की उम्मीद बढ़ गई.

चार साल बाद, भारतीय सेना के एक खोजी अभियान के दौरान तीन और शव मिले. बाद के तलाशी अभियानों में चार और शव मिले.

2018 में, एक पर्वतारोही टीम को ढाका ग्लेशियर बेस कैंप में एक और शव मिला और फिर अगले वर्ष विमान का मलबा भी मिल गया.

इन सभी कोशिशों से इस संभावना को बल मिला कि इस क्षेत्र में अभी और शव मिल सकते हैं.

चेरियन, नारायण सिंह, मलखान सिंह और मुंशीराम के शव उसी ग्लेशियर पर 16,000 फिट की ऊंचाई पर मिले थे.

हालांकि ये साफ़ नहीं है कि सेना और टीएमआर टीम को शवों के ठीक उसी जगह पर होने के बारे में पहला संकेत कैसे मिला था.

इस बारे में सेना के अधिकारियों से जवाब मिलने के बाद इस स्टोरी में अपडेट किया जाएगा.

चेरियन का शव कैसे पहचाना गया image IMRAN QURESHI थॉमस चेरियन का शव लाते सेना के जवान

चेरियन के भाई ने कहा इन तमाम वर्षों के दौरान उनके भाई ( चेरियन के बड़े भाई) को सेना ये बताती रही कि खोज अभी जारी है.

शव मिलने पर सूचित किया जाएगा. सेना ने अपना वादा निभाया. इतने वर्षों तक इसकी जानकारी देते रहना वास्तव में तारीफ़ की बात है.

दो दिन पहले जब सबसे पहले स्थानीय पुलिस स्टेशन ने चेरियन के परिवार को सूचना दी कि उनका शव मिल गया तो परिवार के सदस्यों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.

इसके तुरंत बाद सेना ने भी इसकी पुष्टि कर दी और इस तरह इस परिवार ने इतने सालों के तनाव के बाद मुक्ति का अहसास किया.

चेरियन थॉमस के भाई थॉमस ने कहा, ''मुझे बताया गया कि शव की पहचान उनकी वर्दी पर लिखे 'थॉमस सी' की वजह से हो पाई. सी का मतलब चेरियन. बाकी के अक्षर गायब हो गए थे. उनकी जेब में रखे एक डॉक्यूमेंट से भी पहचान में आसानी हुई.''

थॉमस इस मामले में काफ़ी व्यावहारिक दिखे. उन्होंने कहा, ईमानदारी से कहें तो हम उनसे (सेना के लोगों) ये उम्मीद नहीं करते कि वो ताबूत खोलें.’’

बेंगलुरु के वैदेही इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के फॉरेंसिक मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. जगदीश रेड्डी से पूछा कि क्या शव इस स्थिति में रहा होगा कि इसे पहचाना जा सके.

उन्होंने बीबीसी हिंदी को बताया,''डीप फ्रीजर में शून्य से नीचे का तापमान ग्लेशियर के तापमान जैसा ही होता है. -20 डिग्री या इसी के आसपास जैसे तापमान में एक शव महीनों या वर्षों तक रहता है. हालांकि इसकी स्थिति एक सामान्य शरीर की तरह नहीं होगी.’’

डॉ. रेड्डी ने कहा, ''लेकिन अब भी उसमें ऐसी कुछ चीजें होंगी जिनसे उसे पहचाना जा सके. ये इस बात पर निर्भर करता है कि वहां कैसा तापमान है. मान लीजिए गर्मी के मौसम में अगर तापमान बढ़ जाए तो थोड़ी मुश्किल हो सकती है. कुल मिलाकर 56 वर्षों के बाद कुछ चीज़ें होंगी जो शव की पहचान में मदद करे. लेकिन शरीर पहले जैसा रहेगा, ये संभव नहीं है.’’

सेना में भरोसा बरकरार image Getty Images चेरियन परिवार का सेना में भरोसा बना हुआ है

लेकिन इसके बावजूद चेरियन परिवार का सेना के प्रति विश्वास बरकरार है.

चेरियन के भाई थॉमस ने कहा, ''हमारे सबसे बड़े भाई ने केवल मां की देखभाल के लिए सेना छोड़ी. उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रह रहा था. लेकिन हमारे बड़े परिवार के बाक़ी सदस्य सेना या वायु सेना में अपनी नौकरियां जारी रखीं. अब तो हमारे बाद हमारी तीसरी पीढ़ी भी सेना में काम कर रही है.''

थॉमस ने बताया, ''हमारे एक बुज़ुर्ग चाचा बताते थे कि सेना देश की रक्षा कैसे कर रही है. वो सूबेदार मेजर के पद से रिटायर हुए. लेकिन वह पूरे परिवार के लिए सेना में शामिल के लिए प्रेरणास्रोत थे.''

मंत्रियों और सेना के शीर्ष अधिकारियों के साथ परिवार ने गुरुवार दोपहर तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे पर चेरियन का ताबूत हासिल किया. अंतिम संस्कार गुरुवार दोपहर को उनके गांव के चर्च में हुआ.

लेकिन अंतिम संस्कार से पहले राष्ट्रीय ध्वज में लिपटा ताबूत सीलबंद ही रहा.

नारायण सिंह की पत्नी ने किया कई सालों तक इंतज़ार

उधर इन चार सैनिकों में से एक नारायण सिंह बिष्ट का शव भी उत्तराखंड में चमोली ज़िले के थराली ब्लॉक स्थित गांव कोलपूडी पहुँचा.

तीन अक्तूबर को उनके पैतृक गाँव में अंतिम संस्कार किया गया.

कोलपूडी गांव के ग्राम प्रधान जयवीर सिंह नारायण सिंह के भतीजे हैं.

जयवीर सिंह ने बताया, ''मेरे ताऊ शहीद नारायण सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे. उनका विवाह साल 1962 में बसंती देवी से हुआ था, तब उनकी उनकी उम्र 15 साल थी. साल 1968 में नारायण सिंह विमान हादसे के शिकार हो गए लेकिन उनका शव नहीं मिला था.''

जयवीर सिंह ने बताया, ''बसंती देवी को उम्मीद थी कि उनके पति ज़रूर घर लौटेंगे लेकिन वक्त़ बीतने के साथ उम्मीद भी ख़त्म होती चली गई.''

लगभग आठ वर्षों बाद नारायण सिंह के वापस आने की उम्मीद छोड़ चुके परिजनों ने नारायण सिंह के चचेरे भाई भवान सिंह को धर्म पुत्र मानते हुए नारायण सिंह के घर में ही उनकी पत्नी बसंती देवी के साथ रहने की (बग़ैर शादी) अनुमति दे दी.''

जयवीर सिंह ने बताया, ''इसके बाद बसंती देवी और भवान सिंह के दो बेटे और पाँच बेटियाँ हुईं.''

बसंती देवी और भवान सिंह के दो बेटे और पाँच बेटियों में ख़ुद जयवीर एक हैं, जो कि वर्तमान में कोलपूडी गांव के प्रधान हैं.

जयवीर ने बताया, ''अगर नारायण सिंह जीवित होते तो वह मेरे पिता होते. अब चूँकि वह इस दुनिया में नहीं हैं तो वह रिश्ते में मेरे ताऊ हुए.''

जयवीर सिंह बताते हैं, ''मां बसंती देवी ने बताया था कि पति नारायण सिंह सेना में तैनात थे. वह साल में एक बार घर आते थे, अक्सर ख़तों से ही हालचाल पता लगता था. एक बार सेना की तरफ़ से अंग्रेज़ी में टेलीग्राम आया, जिसमें विमान हादसे में नारायण सिंह के लापता होने की सूचना थी.''

जयवीर सिंह कहते हैं, ''सेना की तरफ़ से बसंती देवी कभी कोई सुविधा नहीं मिली.''

उन्होंने कहा, ''वर्ष 2011 में मेरी माँ बसंती देवी की मृत्यु हो गई. इसके बाद मेरे पिता भवान सिंह की मृत्यु भी 2018 में हो गई.''

जयवीर कहते हैं, ''मेरे पास ताऊ की याद के तौर पर कोई तस्वीर भी नहीं है.''

जयवीर सिंह कहते हैं, “नारायण सिंह का पार्थिव शरीर गुरुवार को गांव पहुंचा, जिसके बाद सैन्य सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया.''

क्या है विमान हादसे की पूरी कहानी image ASIF बसंती देवी तब महज़ 15 साल की थीं जब उनकी शादी नारायण सिंह बिष्ट से हुई थी

सात फ़रवरी 1968 को भारतीय वायुसेना का एएन -12-बीएल-534 विमान चंडीगढ़ से लेह के लिए उड़ान भरी थी.

विमाग में भारतीय सेना के जवान सवार थे, लेकिन बीच रास्ते में ही रोहतांग दर्रे के पास विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. विमान सवार सभी 102 जवानों की मौत हो गई थी.

पी.आर.ओ डिफ़ेंस देहरादून के लेफ़्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव ने बताया, ''उस विमान में सवार कुल 102 लोगों में 98 फ़ौजी और चार क्रू मेंबर थे. उस विमान को लेह में लैंड करना था लेकिन लेह में मौसम ख़राब होने के कारण विमान वहाँ लैंड नहीं हो सका, जिसको देखते हुए विमान को चंडीगढ़ की तरफ़ वापिस लाया जा रहा था.''

उन्होंने बताया, ''चंडीगढ़ लौटते समय भी मौसम ख़राब था, जिस कारण विमान रोहतांग के आसपास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था. जब यह विमान लापता हुआ था, तब उस समय कुछ इस तरह की चर्चाएं भी हुईं कि कहीं विमान 'दुश्मन देश' की सीमा में तो नहीं लैंड हो गया होगा.''

लेफ़्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव ने बताया, ''वर्ष 2003 में अटल बिहारी माउंटेनियरिंग इंस्टिट्यूट द्वारा विमान का मलबा ढूँढा गया. दरअसल यह “चंद्रभागा 13” पर पर्वतारोहण कर रहे एक पर्वतारोही दल ने अचानक विमान का मलबा ढाका ग्लेशियर के पास देखा.''

उन्होंने बताया, ''उसी स्थान पर पर्वतारोहियों को एक पहचान पत्र भी मिला. यह दल अटल बिहारी माउंटेनियरिंग इंस्टीट्यूट का दल था. जिसके बाद यह माना गया कि यह मलबा एएन -12-बीएल-534 विमान का ही है.''

कर्नल मनीष श्रीवास्तव के मुताबिक़, ''तब से वहाँ से जवानों को निकालने के लिये गढ़वाल स्काउट्स की लीडरशिप में भारतीय सेना द्वारा कई अभियान चलाए गए. इसके बाद 2005, 2006, 2013 और 2019 में भी सर्च ऑपरेशन चलाया गया.''

उन्होंने बताया, ''वर्ष 2019 में भी पाँच जवानों के पार्थिव शरीर पाए गए थे. इसके बाद से जवानों को खोजने के लिए डोगरा स्काउट्स की बटालियन द्वारा लगातार अभियान चलाया जाता रहा है. फिर इस साल 29 सितंबर को चार जवानों के पार्थिव शरीर पाए गए हैं.”

''इन चार लोगों में नारायण सिंह (चमोली, उत्तराखंड), मालखान सिंह (देवबंद, सहारनपुर, यूपी), मुंशीराम (रेवाड़ी, हरियाणा) और थॉमस चेरियन (कौल्लम,केरला) हैं.”

लेफ़्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव कहते हैं, ''हमारी फ़ौज का उसूल है, हम कभी अपने साथी को न ही भूलते हैं और न ही पीछे छोड़ते हैं.''

''इनके अलावा जो साथी अब भी छूटे हैं, उन्हें वापिस लाने के लिए हमारी डोगरा स्काउट्स भरसक प्रयास कर रही है.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़ रूम की ओर से प्रकाशित

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