केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों से ये स्पष्ट हो गया है कि फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने ज़बरदस्त वापसी की है और जनता का भरोसा जीता है.
महबूबा मुफ़्ती की पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को जनता ने नकार दिया है.
दूसरी तरफ़ तमाम कोशिशों के बावजूद, बीजेपी अपनी पहुँच को जम्मू क्षेत्र से आगे बढ़ाने में नाकाम रही है.
जम्मू-कश्मीर की 90 विधानसभा सीटों में से आधी से अधिक नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस के खाते में जाती दिख रही हैं.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए करें 10 साल बाद चुनावसाल 2019 में अनुच्छेद 370 और जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त होने के बाद से पहली बार जम्मू-कश्मीर में चुनाव हुए हैं. पिछला चुनाव 2014 में हुआ था.
नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस के बीच गठबंधन था जबकि पिछली बार बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली महबूबा मुफ़्ती की पीडीपी अकेले मैदान में उतरी थी.
सबसे ज़्यादा नुक़सान पीडीपी को ही हुआ है. पिछले चुनावों में 28 सीटें जीतने वाली पीडीपी का सूपड़ा साफ़ हो गया है और पार्टी सिर्फ़ तीन सीटों तक सिमट गई है.
पिछली बार 30 सीटें जीतने वाली बीजेपी अपना पुराने प्रदर्शन के क़रीब ही रहती दिख रही है.
महबूबा मुफ़्ती की बेटी इल्तिज़ा मुफ़्ती भी अपनी सीट से पिछड़ रही हैं, जिससे साफ़ है कि कश्मीर घाटी के वोटरों ने एकतरफ़ा नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस गठबंधन को वोट दिए हैं.
जम्मू-कश्मीर में तीनों चरणों के दौरान औसतन 63 फ़ीसदी से अधिक वोट पड़े.
पहले चरण में मतदान 61 फ़ीसदी रहा जबकि दूसरे चरण में 57.3 और तीसरे चरण में 68.72 प्रतिशत मतदान हुआ.
लोकसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने जम्मू-कश्मीर की कुल पाँच में से दो सीटों पर जीत दर्ज की थी जबकि उमर उब्दुल्ला बारामूला सीट पर इंजीनियर रशीद से बड़े अंतर से चुनाव हार गए थे. जम्मू क्षेत्र की दोनों सीटों पर बीजेपी ने जीत हासिल की थी.
चुनाव नतीजों का ये संकेत भी है कि जम्मू के हिंदू बहुल इलाक़ों में बीजेपी को बढ़त है जबकि कश्मीर घाटी के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में नेशनल कॉन्फ़्रेंस गठबंधन को बढ़त है.
जम्मू-कश्मीर के चुनावी नतीजों में क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर मतों में बँटवारा स्पष्ट नज़र आ रहा है.
जम्मू के हिंदू बहुल ज़िलों जैसे सांभा, उधमपुर, कठुआ में अधिकतर सीटें बीजेपी को मिली हैं. बीजेपी ने चुनाव अभियान के दौरान इन ज़िलों में पूरा दम लगाया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं यहाँ चार रैलियां कीं जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने चौदह रैलियां कीं. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी यहाँ ज़ोर लगाया था.
जम्मू के बड़ी मुस्लिम आबादी वाले ज़िलों राजौरी और पुंछ में बीजेपी ने मुसलमान उम्मीदवार उतारे थे लेकिन इसका कोई ख़ास असर नतीजों पर नज़र नहीं आ रहा है.
कश्मीर की 47 में से 42 सीटों पर नेशनल कॉन्फ़्रेंस गठबंधन आगे है जबकि पीडीपी को सिर्फ़ तीन सीटों पर बढ़त है. समूचे कश्मीर क्षेत्र में बीजेपी खाता भी नहीं खोल सकी.
हालांकि, जम्मू की 43 में से 10 सीटों पर नेशनल कॉन्फ़्रेंस गठबंधन को बढ़त है.
वरिष्ठ पत्रकार तारिक़ बट कहते हैं, “बीजेपी ने मुस्लिम बहुल सीटों पर मुसलमान उम्मीदवारों को ये सोचकर टिकट दिए थे कि उनका कोर हिंदू वोट बैंक साथ रहेगा जबकि मुसलमान होने की वजह से उम्मीदवारों को मुसलमान वोट भी मिल जाएंगे लेकिन नतीजों में ऐसा होता नहीं दिख रहा है. मुसलमान वोटरों ने बीजेपी को ख़ारिज कर दिया है.”
विश्लेषक ये मानते हैं कि अनुच्छेद 370 समाप्त होने के बाद से जम्मू-कश्मीर के लोगों में डर और नौकरियों और ज़मीन पर मालिकाने हक़ को लेकर चिंताएं बढ़ी हैं.
तारिक़ बट कहते हैं, “कश्मीर क्षेत्र के नतीजों से ये संदेश उभरकर आ रहा है कि लोग 370 हटाए जाने का जवाब मतदाता दे रहे हैं. लोगों ने नेशनल कॉन्फ़्रेंस में ये भरोसा जताया है कि ये क्षेत्रीय पार्टी बीजेपी की नीतियों का जवाब दे सकती है.”
नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने जम्मू-कश्मीर का राज्य का दर्जा वापस हासिल करने के लिए जद्दोजहद करने का वादा किया है.
विश्लेषक ये मान रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर में चुनावों से पहले नेशनल कॉन्फ़्रेंस या कांग्रेस के समर्थन में कोई लहर नज़र नहीं आ रही थी. लेकिन नतीजे स्पष्ट रूप से इस गठबंधन की तरफ़ गए हैं.
इसकी वजह बताते हुए तारिक़ बट कहते हैं, “370 के बाद जो बदलाव जम्मू-कश्मीर में हुआ, उस माहौल में बीजेपी के ख़िलाफ़ सिर्फ़ एक ही पार्टी खड़ी रही- वो है नेशनल कॉन्फ़्रेंस. वहीं पीडीपी के कई नेता पार्टी छोड़कर चले गए और पार्टी का ढांचा भी बिगड़ गया."
"लेकिन नेशनल कॉन्फ़्रेंस का पार्टी स्ट्रक्चर बरक़रार रहा और ये हवा बनी कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस उभरेगी. नेशनल कॉन्फ़्रेंस के लिए भले ही कोई लहर ना बनी हो लेकिन पार्टी को लेकर ये धारणा ज़रूर बनी कि यह मुद्दे उठाएगी. यही एनसी की बढ़त का कारण रहा.”
2024 के लोकसभा चुनावों के दौरान एनसी-कांग्रेस गठबंधन ने जम्मू-कश्मीर में 41 फ़ीसदी वोट हासिल किए थे.
वहीं बीजेपी का वोट प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनावों के मुक़ाबले 42 फ़ीसदी से गिरकर 24 पर आ गया था.
तारिक़ बट कहते हैं, “लोकसभा चुनावों के दौरान भी ये संकेत मिल गए थे कि कश्मीर के मतदाता किधर जाएंगे. हालांकि विधानसभा चुनावों में स्थानीय मुद्दे भी होते हैं, जिनका असर भी नतीजों पर नज़र आ रहा है. सबसे बड़ा फ़ैक्टर अनुच्छेद 370 का हटना ही रहा है.”
विश्लेषक मान रहे हैं कि जम्मू-कश्मीर चुनाव नतीजों का एक संदेश ये है कि चुनाव यहां एनसी बनाम बीजेपी हुआ है जबकि कांग्रेस ने सिर्फ़ सहयोगी की भूमिका निभाई है.
चुनाव के दौरान भले ही लोगों ने बिजली, पानी और सड़क जैसे मुद्दों की बात की लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक़, अंत में मतदाताओं के लिए सबसे अहम मुद्दा अनुच्छेद 370 हटाया जाना ही रहा.
वहीं बीबीसी के सहयोगी पत्रकार माजीद ज़हांगीर के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर के चुनाव नतीजे हैरान नहीं करते हैं.
माजिद जहांगीर कहते हैं, “दक्षिण कश्मीर में लगभग सभी सीटें पर नेशनल कॉन्फ़्रेंस आगे है, उत्तर में भी ऐसा ही है. श्रीनगर-बडगाम और दूसरे सेंट्रल कश्मीर के इलाक़ों में भी नेशनल कॉन्फ़्रेंस ही सबसे आगे है, ये तो माना जा रहा था कि लोग एनसी को पसंद कर रहे हैं, लेकिन ऐसी इकतरफ़ा लहर होगी, ये अंदाज़ा नहीं था.”
माजिद जहांगीर कहते हैं, “नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेताओं को भी अंदाज़ा नहीं होगा कि कश्मीर घाटी में पार्टी 40 सीटों के ऊपर जाएगी. लेकिन अब नतीजे बता रहे हैं कि पार्टी ने अनुमानों से भी बड़ी जीत हासिल की है.”
विश्लेषक मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में एक नैरेटिव की लड़ाई थी जो पूरी तरह से बीजेपी और नेशनल कॉन्फ़्रेंस के बीच थी.
माजिद जहांगीर कहते हैं, “ऐसा लग रहा है कि लोगों ने ये तय किया कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस से अगर पीछे कोई ग़लतियां हुई भी हैं तो उन्हें भुलाकर उसे क़ामयाब करना है. एक संदेश ये स्पष्ट है कि मतदाताओं ने बीजेपी को कश्मीर घाटी से दूर करने की कोशिश की है.”
साल 2014 के चुनाव में नेशनल कॉन्फ़्रेंस को सिर्फ़ 16 सीटें मिली थीं. लेकिन इस बार पार्टी ने इकतरफ़ा जीत हासिल की है.
जम्मू-कश्मीर में एनसी-कांग्रेस गठबंधन के लिए सरकार बनाना मुश्किल नहीं होगा.
समीकरणों के लिहाज़ से भले ही सरकार बनाने के लिए पीडीपी की ज़रूरत ना पड़े लेकिन नेशनल कॉन्फ़्रेंस नेता डॉ. फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने कहा है कि अगर पीडीपी सरकार में शामिल होना चाहेगी तो उसका स्वागत किया जाएगा.
नेशनल कॉन्फ़्रेंस नेता फ़ारूक़ अब्दुल्लाह ने नतीजों के बाद , “दस साल के बाद लोगों ने अपना बहुमत हमें दिया है, हम लोगों की उम्मीदें पूरी करना चाहते हैं. उनकी मुश्किलें दूर करना हमारा पहला काम होगा.”
वहीं पीडीपी नेता महबूबा मुफ़्ती ने हार को स्वीकार करते हुए कहा, “उतार-चढ़ाव आते रहते हैं. लोगों को ऐसा लगा कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस और कांग्रेस स्थिर सरकार देकर बीजेपी को दूर रख सकती हैं, तो उन्होंने नेशनल कॉन्फ़्रेंस को वोट किया. लोकतंत्र में लोगों की मर्ज़ी का सम्मान होना चाहिए.”
जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद चुनाव हुए हैं. विश्लेषक मानते हैं कि कश्मीर के लोगों ने मतदान के ज़रिए अपनी ख़ामोशी तोड़ी है.
माजिद जहांगीर कहते हैं, “कश्मीर के लोग कुछ कहना चाहते थे लेकिन हालात की वजह से यहां के लोग ख़ामोश थे और अपने आप को अभिव्यक्त नहीं कर पा रहे थे. इन चुनावों के ज़रिए लोगों ने अपनी बात कहने की कोशिश की है.''
''कश्मीर के आम लोग अब भी यही मानते हैं कि 370 हटाना कश्मीर के साथ नाइंसाफ़ी है. यही वजह है कि लोगों ने बड़ी तादाद में चुनावों में हिस्सा लिया और ये लोगों ने ये ज़ाहिर किया कि वो अपने हक़ हासिल करने के लिए लोकतांत्रिक सरकार चाहते हैं.”
भारतीय जनता पार्टी ने चुनाव अभियान के दौरान बहुमत से सरकार बनाने का दावा किया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जम्मू में चुनावी सभा में कहा था कि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी पहली बार अपने दम पर सरकार बनाएगी, हालांकि बीजेपी अपने पुरानी 30 सीटें हासिल करने के आंकड़े को पार नहीं कर सकी.
जम्मू कश्मीर चुनावों में बड़ी तादाद में स्वतंत्र उम्मीदवार भी उतरे. इंजीनियर रशीद की पार्टी ने भी स्वतंत्र उम्मीदवार ही उतारे.
लेकिन इस बार स्वतंत्र उम्मीदवार भी बड़ी तादाद में नहीं जीते हैं.
वहीं कश्मीर के लोगों ने कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले ग़ुलाम नबी आज़ाद को भी पूरी तरह नकार दिया है.
माजिद जहांगीर कहते हैं, “ग़ुलाम नबी आज़ाद को कश्मीर का सबसे बड़े क़द का नेता माना जाता था, लेकिन इस बार उनकी छवि बीजेपी के क़रीबी की बनी और जनता ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया.”
आम आदमी पार्टी ने भी पहली बार कश्मीर में खाता खोला है और एक सीट हासिल की है.
बीते 10 सालों में जम्मू-कश्मीर में बहुत कुछ बदल गया है. विशेष राज्य का दर्जा समाप्त हो चुका है और पिछले पाँच साल से एलजी के ज़रिए केंद्र सरकार यहाँ शासन चला रही है.
ऐसे में नई सरकार के सामने, लोगों की उम्मीदों को पूरा कर पाना बहुत आसान नहीं होगा.
माजिद जहांगीर कहते हैं, “जम्मू-कश्मीर में सरकार बनाने से बड़ी चुनौती होगी सरकार चलाना और लोगों को ये अहसास कराना कि ये उनकी सरकार है.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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