चीन का कहना है कि उसने इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल यानी आईसीबीएम का अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में परीक्षण किया है.
चीन के इस क़दम का कई देशों ने विरोध किया है.
चीन के मुताबिक़, 25 सितंबर को 40 साल में पहली बार इस तरह का परीक्षण किया गया है. ये रूटीन का हिस्सा था. इस मिसाइल के निशाने पर कोई देश नहीं था.
चीनी मीडिया की मानें तो सरकार ने इस बारे में संबंधित देशों को पहले ही बता दिया था.
लेकिन जापान का कहना है कि उसे ऐसी कोई सूचना नहीं दी गई थी. जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड ने इस मामले में चिंता ज़ाहिर की है.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें चीन के क़दम से बढ़ी चिंताइस लॉन्च से हिन्द प्रशांत क्षेत्र में तनाव बढ़ा है. जानकारों का कहना है कि इससे पता चलता है कि चीन की लंबी दूरी तक हमला करने की न्यूक्लियर क्षमता बढ़ी है.
अमेरिका ने बीते साल आगाह किया था कि चीन ने डिफेंस अपग्रेड के तहत अपनी परमाणु ताक़तों को मज़बूत किया है.
चीन ने जिस मिसाइल यानी आईसीबीएम का परीक्षण किया है, वो 5500 किलोमीटर तक वार कर सकती है.
इससे चीन की पहुंच अब अमेरिका और हवाई द्वीप तक हो गई है. लेकिन चीन की सैन्य ताक़त अब भी रूस और अमेरिका से क़रीब पांच गुना कम है.
चीन कहता रहा है कि उसका न्यूक्लियर रखरखाव सिर्फ़ इसलिए है कि कोई और हमला ना करे.
चीन ने 25 सितंबर को एलान किया था कि लंबी दूरी की मिसाइल का स्थानीय समयानुसार सुबह 8.44 बजे परीक्षण किया गया.
मिसाइल के साथ एक नक़ली (डमी) वॉरहेड था जो पहले से तय की गई जगह पर गिरा. माना जा रहा है कि ये जगह दक्षिणी प्रशांत महासागर में हो सकती है.
चीन के रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ये टेस्ट लॉन्च रूटीन और सालाना ट्रेनिंग का हिस्सा थी.
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विश्लेषकों का कहना है कि चीन का आख़िरी ज्ञात आईसीबीएम परीक्षण 1980 के दौर में हुआ था.
आमतौर पर चीन ये परीक्षण देश के अंदर ही किसी हिस्से में किया करता था. अतीत में शिंजियांग प्रांत के टकलामकान रेगिस्तान में ऐसे परीक्षण किए गए थे.
न्यूक्लियर मिसाइल विशेषज्ञ अंकित पांडा ने बीबीसी से कहा, ''इस तरह के परीक्षण अमेरिका जैसे दूसरे देशों के लिए असामान्य नहीं हैं मगर चीन के मामले में ये सामान्य बात नहीं है.''
अंकित ने कहा, ''चीन के परमाणु आधुनिकीकरण के परिणामों के चलते पहले ही काफ़ी बदलाव आ चुके हैं. ये लॉन्च अब चीन के रुख़ में बदलाव को दिखाता है.''
चीन के इस परीक्षण पर प्रतिक्रियाएं दूसरे देशों में भी देखने को मिलीं.
जापान ने गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि चीन की ओर से कोई नोटिस नहीं दिया गया था.
ऑस्ट्रेलिया ने कहा कि इस क़दम से क्षेत्र में अस्थिरता और ग़लत आकलन का जोखिम बढ़ता है. ऑस्ट्रेलिया ने भी इस मामले में चीन से जवाब मांगा है.
न्यूज़ीलैंड ने चीन के परीक्षण का स्वागत नहीं किया है और इसे चिंता पैदा करने वाली हरकत बताया.
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अंकित पांडा कहते हैं, ''मुझे नहीं लगता कि चीन इसके ज़रिए कोई राजनीतिक संदेश देना चाहता था. मगर इसमें कोई शक नहीं कि इस क़दम से इस क्षेत्र और अमेरिका को ये याद रखना होगा कि परमाणु ताक़त के मामले में एशिया में चीज़ें तेज़ी से बदल रही हैं.''
कई दूसरे जानकारों का कहना है कि ये अमेरिका और दूसरे सहयोगी देशों के लिए ख़तरे की घंटी है.
दक्षिण कोरिया की एवहा वीमेन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंध की प्रोफ़ेसर लिफ एरिक एसले ने कहा, ''अमेरिका के लिए साफ़ संदेश है कि ताइवान स्ट्रेट संघर्ष में किसी तरह का सीधा दखल अमेरिका की धरती को भी ख़तरे में ले आएगा.''
उन्होंने कहा, ''चीन का ये परीक्षण अमेरिका और एशिया में उसके सहयोगियों को ये दिखाता है कि चीन कई मोर्चों पर एक साथ लड़ सकता है.''
सिंगापुर में एस राजारतनम स्कूल ऑफ इंटरनेशन स्टडीज़ के सीनियर फेलो ड्रू थॉम्पसन ने कहा, ''समय ही सब कुछ है. चीन कहता है कि निशाने पर कोई देश नहीं था. मगर चीन का जापान, फिलीपींस और ताइवान से तनाव काफ़ी बढ़ा हुआ है.''
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अमेरिका और चीन के संबंधों में बीते एक साल में सुधार देखने को मिला था.
मगर इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मुखरता या आक्रामकता एक बाधा बनी हुई है. फिलीपींस और चीन के जहाज़ विवादित जलक्षेत्र में एक-दूसरे के आमने-सामने आते रहते हैं.
बीते महीने जापान ने आरोप लगाया था कि चीन के जासूसी प्लेन जापानी हवाई क्षेत्र में घुसे. जापान ने इसे अस्वीकार्य बताया था और इसके बाद जापान के लड़ाकू विमान भी सक्रिय दिखे.
चीन और ताइवान के संबंध भी तनाव की एक वजह है.
ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने 25 सितंबर को कहा था- चीन ने हाल ही में बड़े स्तर पर मिसाइल फायरिंग की और दूसरे सैन्य अभ्यास किए.
इसी बयान में कहा गया था कि ताइवान के आस-पास 23 चीनी सैन्य विमान पाए गए, ये विमान लंबी दूरी के मिशन पर थे.
चीन ताइवान के जल और हवाई क्षेत्र में अपने जहाज़ और विमान भेजता रहा है. अपनी घुसपैठ को सामान्य बनाने के लिए चीन इसे 'ग्रे ज़ोन वॉरफेयर' कहता है.
जुलाई में चीन ने अमेरिका के साथ परमाणु हथियारों को लेकर अपनी बातचीत को सस्पेंड कर दिया था. अमेरिका की ओर से ताइवान को हथियार बिक्री के विरोध में चीन ने ये क़दम उठाया था.
बीते साल अमेरिका ने चीन के परमाणु आधुनिकीकरण को लेकर आगाह भी किया था. तब अमेरिका ने अनुमान लगाया था कि चीन के पास 500 से ज़्यादा न्यूक्लियर वॉरहेड्स हैं, इनमें से 350 आईसीबीएम हैं.
अमेरिका की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2030 तक चीन के पास 1000 वॉरहेड्स होंगे. अमेरिका और रूस का कहना है कि उनके पास 5000 से ज़्यादा वॉरहेड्स हैं.
चीन की मिलिट्री रॉकेट फोर्स को लेकर भी विवाद है. ये यूनिट ही परमाणु हथियारों को संभालती है.
भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान को लेकर बीते साल इस यूनिट के दो नेताओं को भी निकाल दिया गया था.
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