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मोहम्मद मुइज़्ज़ू भारत से दूरियां कम क्यों करना चाह रहे हैं?

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Getty Images भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने हैदराबाद भवन में मुलाकात की

मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. मुइज़्ज़ू चार दिवसीय भारत दौरे पर हैं.

पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति बनने के बाद यह उनकी पहली भारत यात्रा है. मुइज़्ज़ू की ‘प्रो-चाइना’ छवि की वजह से भारत और मालदीव के बीच रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव देखने को मिले.

मुइज़्ज़ू की यह यात्रा दोनों देशों के बीच बेहतर रिश्तों का नया अध्याय है.

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद मुइज़्ज़ू ने कहा,''मालदीव के सामाजिक, आर्थिक और बुनियादी सुविधाओं के विकास में भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार है. मालदीव की जरूरत के समय भारत हमेशा हमारे साथ खड़ा रहा है.''

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मुइज़्ज़ू ने कहा, '' बीते सालों में मालदीव की सहायता और सहयोग करने के लिए मैं प्रधानमंत्री मोदी, भारत सरकार और यहां के लोगों का धन्यवाद करना चाहूंगा.''

विदेशी मुद्रा भंडार की कमी और आर्थिक संकट से जूझ रहे मालदीव के लिए यह यात्रा फ़ायदेमंद साबित हुई है.

दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर हुए. भारत ने अमेरिकी डॉलर/यूरो स्वैप विंडो के तहत 400 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक की करेंसी स्वैप (मुद्राओं की अदला-बदली) पर सहमति दी है.

साथ ही भारतीय रुपया स्वैप विंडो के तहत 30 बिलियन रुपये तक की मुद्रा की अदला-बदली पर भी सहमति जताई है.

करेंसी स्वैप दो देशों के बीच एक समझौता है, जिसके तहत कोई एक देश दूसरे देश को विदेशी मुद्रा में कर्ज़ देने को राज़ी होता है. इसमें रीपेमेंट दूसरी मुद्रा में होती है. जिसके लिए एक निश्चित तारीख़ और विनिमय दर (एक्सचेंज रेट) तय होती है.

ऐसे कर्ज़ के मामलों में विदेशी बाज़ार की तुलना में ब्याज़ दर सामान्यतः कम होता है.

भारत से कर्ज़ मिलने के बाद मालदीव के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होगी. हाल ही में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक़ मालदीव के पास मात्र डेढ़ महीने का विदेशी मुद्रा भंडार बचा हुआ है.

भारत-मालदीव के बीच हुए करेंसी स्वैप की तरह ही साल 2021 में चीन और श्रीलंका के बीच मुद्राओं का अदला-बदली की गई थी.

उस वक्त चीन ने श्रीलंका को 10 बिलियन युआन (1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर) का कर्ज़ दिया था. श्रीलंका उस समय भारी आर्थिक संकट से जूझ रहा था. इस कारण इस कदम को चीन पर श्रीलंका की निर्भरता बढ़ाने के तौर पर देखा गया था.

दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में इंटरनेशनल स्टडीज़ स्कूल के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने इस मुद्दे पर बीबीसी से बात की.

वो कहते हैं,'' भारत और मालदीव के बीच आर्थिक और समुद्री सुरक्षा को लेकर साझेदारी पर भी करार हुआ है. साथ ही दोनों देशों ने ‘फ्री ट्रेड एग्रीमेंट’ पर भी सहमति जताई है. दोनों देशों के नेताओं के बीच मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने मालदीव के संकट के समय भारत की 'फर्स्ट रिस्पॉन्डर' की भूमिका पर ज़ोर दिया.”

प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं,''चाहे वह कोई ज़रूरी वस्तु हो, कोविड के दौरान टीके हों या पीने का पानी हो, भारत ने एक अच्छे पड़ोसी की भूमिका निभाई है.''

मुइज़्जू का ‘इंडिया आउट’ दांव image Getty Images मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू 'इंडिया आउट' नारे के साथ चुनाव जीते थे

राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू चीन के प्रति अपने झुकाव के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने ‘इंडिया आउट’ नारे की मदद से चुनाव जीता, जिसमें उन्होंने मालदीव में भारतीय सेना की उपस्थिति को ख़त्म करने का वादा किया.

यह मालदीव की पारंपरिक नीति 'इंडिया फर्स्ट' से बिल्कुल उलट था, जिसे पिछली सरकारों ने बनाए रखा था.

भारत का मालदीव पर लंबे समय से प्रभाव रहा है. मालदीव की रणनीतिक स्थिति के कारण भारत को मालदीव में रहकर हिंद महासागर के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर नज़र रखने की अनुमति मिली.

लेकिन मुइज़्ज़ू चीन के साथ मालदीव की नजदीकी बढ़ाना चाहते थे और मालदीव की पारंपरिक नीति को बदलना चाहते थे.

मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद प्रधानमंत्री मोदी की ओर से भारत के लक्षद्वीप में पर्यटन का प्रचार किए जाने पर मुइज़्ज़ू कैबिनेट के दो मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी पर अपमानजनक टिप्पणी की. इसे तब मालदीव के विरोध के जवाब के रूप में देखा गया था.

मालदीव के मंत्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी को 'चरमपंथी' और 'इसराइल की कठपुतली' कहा था.

इन अपमानजनक टिप्पणियों की वजह से भारत में मालदीव के ख़िलाफ़ व्यापक रूप से गुस्सा देखने को मिला था.

कोविड महामारी के बाद भारतीय पर्यटक बड़ी तादाद में मालदीव घूमने जाते थे. इन टिप्पणियों का असर यह हुआ कि भारत के लोगों ने मालदीव का बहिष्कार करने का आह्वान किया.

राष्ट्रपति बनने के बाद मुइज़्ज़ू ने पहले से स्थापित परंपरा को तोड़ते हुए अपनी पहली विदेश यात्रा के रूप में भारत की बजाय तुर्की को चुना. इसके बाद उन्होंने चीन का दौरा किया,जहां उन्होंने बड़े व्यापार और रक्षा सौदों पर हस्ताक्षर किए.

चीन से लौटने के बाद मुइज़्ज़ू ने मालदीव की ज़मीन से भारतीय सेना के सभी कर्मचारियों को हटाने का फैसला किया था. भारत ने मुइज़्ज़ू की ये बात मान ली थी और अपनी सेना हटा ली थी.

हालांकि बहुत जल्द ही मुइज़्ज़ू के व्यवहार में बदलाव आया.

मालदीव के जिन मंत्रियों ने मोदी सरकार के ख़िलाफ़ टिप्पणी की थी उन्हें निलंबित कर दिया गया. मालदीव में बढ़ते आर्थिक संकट के बीच मुइज़्ज़ू ने भारत को 'निकटतम सहयोगी' कहा और संकट से उबरने में मदद करने की अपील की .

जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में मुइज़्ज़ू भारत आए थे. इसके बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भी अगस्त में मालदीव की यात्रा की थी.

राष्ट्रपति मुइज़्जू की वर्तमान यात्रा को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए. इस यात्रा के दौरान वो आगरा, मुंबई और बेंगलुरु भी जा रहे हैं.

मुइज़्ज़ू का ‘हृदय परिवर्तन’ क्यों हुआ? image Getty Images पिछले हफ़्ते मुइज़्ज़ू ने कहा था कि भारतीय सेना को बाहर निकालने की इच्छा मालदीव के लोगों की थी, जिसे वो पूरा कर रहे थे

भारत के प्रति मुइज़्ज़ू के नरम रुख़ को मालदीव में आए आर्थिक संकट से जोड़कर देखा जा रहा है. भारतीय पर्यटकों की कम संख्या से देश को नुकसान हुआ और इसने समस्या को और बढ़ा दिया.

'टाइम्स ऑफ इंडिया' की पूर्व विदेशी मामलों की पत्रकार और एस्पेन इंस्टीट्यूट की सीईओ इंद्राणी बागची कहती हैं, ''हमने समस्या (इंडिया आउट) को सुलझा लिया है. मालदीव को इस बात का एहसास हो गया है कि भारत एक विश्वसनीय सहयोगी है. मुइज़्ज़ू ने अपने दूसरे सहयोगियों से मदद लेने की कोशिश की, लेकिन वो सफल नहीं हुए.''

वो कहती हैं, '' भारत भी मुइज़्ज़ू के प्रति काफी संवेदनशील रहा है. जब उन्होंने सेना को हटाने को कहा तब हमने सेना हटा दी. उन्हें इस बात का भी एहसास हुआ कि भारत और मालदीव के बीच रिश्ते में एक मानवीय पहलू भी है.''

इंद्राणी बागची बताती हैं, '' कोविड महामारी से पहले मालदीव में चीनी पर्यटकों की संख्या भारतीय पर्यटकों से कहीं ज़्यादा थी. लेकिन अब भारत मालदीव के पर्यटन के लिए सबसे बड़ा स्त्रोत है, जो मालदीव के लिए सोचने का विषय है.''

वो कहती हैं, ''मालदीव इस बात से भी परिचित है कि भारतीय पर्यटक श्रीलंका और दुबई जा रहे हैं, जहां उन्हें बिना वीज़ा के घूमने की इज़ाज़त है. ये भारतीय पर्यटक ही थे जिन्होंने मालदीव की अर्थव्यवस्था को बनाए रखा.''

पिछले हफ़्ते टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए इंटरव्यू में मुइज़्ज़ू ने कहा था कि भारतीय सेना को बाहर निकालने की इच्छा लोगों की थी, जिसे वह पूरा कर रहे थे. लेकिन उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि मालदीव के विकास के लिए भारत एक बड़ा साझेदार बना हुआ है.

प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात के बाद मुइज़्ज़ू ने ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय पर्यटकों के मालदीव आने का अनुरोध किया.

मुइज़्ज़ू की यात्रा के बाद रिश्तों में क्या बदलाव आएगा? image Getty Images इसी साल जून में अन्य पड़ोसी देशों के नेताओं के साथ ही मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे

विशेषज्ञों का कहना है कि मुइज़्ज़ू की भारत यात्रा और भारत के प्रति नरम रुख का मतलब यह नहीं है कि उन्होंने चीन से दूरी बना ली है. लेकिन इस यात्रा से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की स्थिति मजबूत होगी.

पूर्व राजनयिक वीना सीकरी कहती हैं, '' लोग चुनाव के दौरान ऐसी स्थिति बना लेते हैं जो बाद में बहुत व्यावहारिक नहीं होती हैं. फिर चुनाव ख़त्म होने के बाद आप बहुत ज़्यादा व्यावहारिक हो जाते हैं. लेकिन यह शुरुआत में ही स्पष्ट हो गया था कि मालदीव के लोग भारत को बाहर नहीं करना चाहते थे.''

वो कहती हैं, ''ऐसी चीजें होती रहती हैं. लेकिन इनमें से कोई भी भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ (पड़ोसी पहले) नीति को बदलने वाला नहीं हैं.''

वीना सीकरी कहती हैं, '' यह नीति चीन को लेकर प्रासंगिक नहीं है. मुझे विश्वास है कि इस मुलाकात में चीन के मुद्दे पर भी बातचीत हुई होगी. लेकिन मुइज़्ज़ू ने कहा है कि वे ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा हो. यह उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण बयान है.''

दूसरे विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने जिस तरीके से मालदीव के मुद्दे को संभाला है उसे एक उदाहरण के तौर पर देखना चाहिए कि मालदीव को अपने अन्य पड़ोसियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए.

प्रोफ़ेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, ''यह भारत के पड़ोसियों के लिए नया खाका तैयार कर रहा है कि भारत अपने पड़ोसियों को कैसे बढ़ावा देगा. इस बारे में एक चेतना है कि चीन के संदर्भ में भारत अपने पड़ोसियों से कैसे जुड़ता है.''

उन्होंने कहा, '' हालांकि, जो चीज गायब थी वह मोदी की विदेश नीति का वह पहलू है जो सांस्कृतिक संबंधों और प्रवासी समुदायों को जोड़ने पर निर्भर करता है.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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