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मातृगया तीर्थ : गुजरात के सिद्धपुर में किया जाता है माता का श्राद्ध

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-कार्तिक शुक्ल एकादशी से पूर्णिमा के दौरान हजारों परिवार अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए मातृगया में करते हैं स्नान और पिंडदान

अहमदाबाद, 24 सितंबर (हि.स.)। सिद्धपुर गुजरात के पाटन जिले में प्राचीन सरस्वती नदी के किनारे स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है। सिद्धपुर शहर संपूर्ण भारत में मातृ श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है। भारत के किसी भी क्षेत्र में रहने वाली माता की अंतिम इच्छा मृत्यु के बाद सिद्धपुर स्थित मातृगया में अपने पुत्र से पिंड ग्रहण करने की होती है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक भीष्म पंचक पर्व के समय इस स्थान पर लाखों तीर्थ यात्री पहुंचते हैं और अपने पितरों (पूर्वजों) की आत्मा की शांति के लिए स्नान-दान तथा पिंडदान करते हैं।

सिद्धपुर शहर अति प्राचीन, धार्मिक, पवित्र और ऐतिहासिक नगरी है। उत्तर गुजरात में स्थित सिद्धपुर ‘श्रीस्थल’ के नाम से भी जाना जाता था, बाद में यह शहर सोलंकी वंश के प्रतापी राजा सिद्धराज जयसिंह के समय में उनके नाम से सिद्धपुर के रूप में जाना जाने लगा।

गुजरात पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड के अनुसार गत वर्ष सिद्धपुर के बिंदु सरोवर में कार्तिक, भाद्रपद और चैत्र माह सहित पूरे वर्ष के दौरान लगभग 47,100 परिवारों द्वारा पूरे विधि-विधान से मातृ श्राद्ध की पूजा की गई थी।

गुजरात सरकार सिद्धपुर में धार्मिक क्रिया के लिए आने वाले देश भर के श्रद्धालुओं को विशेष सुविधाएं मुहैया कराने के लिए लगातार कार्यरत है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए पवित्र यात्राधाम विकास बोर्ड एक ऑनलाइन पोर्टल शुरू करने जा रहा है। इस पोर्टल में यात्रियों को मिलने वाली सारी सुविधाएं, पंडित-पुरोहित के संपर्क की जानकारी, पूजा-विधि का स्थान और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन जैसे विषयों को शामिल किया जाएगा, ताकि सिद्धपुर आने वाले तीर्थ यात्रियों को इस पोर्टल के जरिए सभी सुविधाओं की जानकारी मिल सके। यात्रियों को तमाम स्थलों की जानकारी उपलब्ध कराने के लिए इस विशाल में परिसर में एक साइड मैप भी लगाया गया है। यहां ऐसी व्यवस्था की गई है, जिसमें एक साथ 200 परिवार पूजा-विधि का लाभ उठा सकते हैं।

ऐतिहासिक नगरी सिद्धपुर में स्थित बिंदु सरोवर में तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में वर्ष 2012 में नवीन कुंड का निर्माण, मातृश्राद्ध को महत्व को समझाने वाली प्रदर्शनी, म्यूजियम, कुंड, पार्किंग, शौचालय, श्राद्ध विधि के लिए अलग-अलग छतरियों के साथ बैठक व्यवस्था, रुद्धमहालय की प्रतिकृति, उद्यान, स्नानागार, एमिनिटी सेंटर, वीआईपी रूम, कार्यालय भवन, प्रवेश द्वार, परिसर की चाहरदीवारी और सोलर सिस्टम आदि विकसित किए गए थे।

इसके अलावा, सिद्धपुर के बिंदु सरोवर में आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए पर्याप्त स्वच्छता, सुरक्षा, पीने के पानी की सुविधा, शौचालय, पूजा-विधि हॉल, चेंजिंग रूम, उद्यान और विद्युतीकरण का काम भी किया गया है। यात्राधाम विकास ने बिंदु सरोवर में दिन-रात स्वच्छता, संपूर्ण परिसर की सफाई, बिंदु सरोवर कुंड के पानी को फिल्टर कर शुद्ध करने, अल्पा सरोवर में भी सफाई कार्य, दोनों सरोवरों में समय-समय पर पानी को स्वच्छ करने के लिए फिल्ट्रेशन पम्प और वरिष्ठ नागरिकों के लिए ई-रिक्शा जैसी सुविधाएं विकसित की गई हैं।

इतना ही नहीं, विधिवत पूजा के इच्छुक नागरिकों की सरलता और समग्र प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से आगामी समय में यहां सभी कार्यों को डिजिटल माध्यम से किया जाएगा। यहां पिंडदान की विधिवत पूजा-अर्चना के लिए आगामी समय में ‘ऑनलाइन क्यू मैनेजमेंट सिस्टम’ नामक पोर्टल विकसित किया जा रहा है, जिसमें ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, ऑनलाइन स्लॉट या स्पॉट बुकिंग और ऑनलाइन पेमेंट की सुविधा उपलब्ध होगी।

पौराणिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बिंदु सरोवर

सिद्धपुर के बोहरा वाड़ की ऐतिहासिक इमारतें स्थापत्य कला का बेजोड़ उदाहरण है। इन इमारतों में यूरोपीय वास्तुकला की स्पष्ट झलक नजर आती हैं। इनका समावेश संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में भी किया गया है। भारत के चार पवित्र सरोवरों में से एक ‘बिंदु सरोवर’ सिद्धपुर में स्थित है।

आदि शक्ति के स्वरूप के रूप में माता का विशेष महत्व है। माता की भक्ति और स्नेह का मूल्य कोई भी नहीं आंक सकता। बिंदु सरोवर एक पवित्र स्थल है, जहां विधि-विधान से मातृश्राद्ध किया जाता है। प्रतिवर्ष कार्तिक माह यानी अक्टूबर-नवंबर महीने के दौरान देश के कोने-कोने से हजारों परिवार दिवंगत माता के श्राद्ध के लिए यहां आते हैं। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार बिंदु सरोवर यानी बूंद से बना हुआ सरोवर। मान्यता है कि भगवान विष्णु के आंसू यहां तालाब में गिर थे। भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम ने बिंदु सरोवर के किनारे अपनी माता रेणुका का पिंड दान किया था। इस पवित्र स्थान पर परशुराम का मंदिर भी स्थित है, जहां अनेक ऋषि-मुनियों ने तपस्या की है।

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हिन्दुस्थान समाचार / बिनोद पाण्डेय

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