Top News
Next Story
NewsPoint

कहानी रॉ और मोसाद की लड़ाई की, जब श्रीलंका में आमने-सामने आ गए थे भारत और इजरायल

Send Push
तेल अवीव: वर्ष 1984, स्थान: श्रीलंका। उस वक्त भारत की रॉ और इजरायल की मोसाद के बीच कांटे की टक्कर चल रही थी। इसका प्रमुख कारण श्रीलंका का गृहयुद्ध था। श्रीलंका में गृहयुद्ध की शुरुआत 1980 के दशक में हो गई थी। इस गृहयुद्ध में एक पार्टी श्रीलंका की सिंहली बहुल सरकार थी और दूसरा पक्ष उत्तरी श्रीलंका में रहने वाले तमिल अल्पसंख्यक थे। दरअसल, दशकों तक श्रीलंका के तमिलों ने सिंहली बौद्ध-नेतृत्व वाली सरकार के भेदभाव को सहा और जब अति हो गई तो उन्होंने सशस्त्र विद्रोह का रास्ता चुन लिया। इसी से श्रीलंका में लिबरेशन ऑफ तमिल टाइगर ईलम (लिट्टे) की स्थापना भी हुई थी, जिसका नेता वेल्लुपिल्लई प्रभाकरन था। श्रीलंका के गृहयुद्ध में भारत की एंट्री कैसे हुएभारत के लिए, श्रीलंका का गृहयुद्ध एक बड़ी समस्या थी। श्रीलंका एक बहुत ही संवेदनशील लोकेशन पर स्थित देश है और रणनीतिक रूप से भारत का महत्वपूर्ण पड़ोसी भी है। ऐसे में श्रीलंका में जो कुछ भी होता है, उसका सीधा असर भारत पर पड़ता है। इस कारण भारत चाहता था कि श्रीलंका में स्थिरता आए। भारत सरकार श्रीलंका के सिंहली बौद्ध बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यक तमिलों के साथ भेदभाव को भी समाप्त करना चाहती थी। इसके लिए भारत ने श्रीलंका की मदद की भी पेशकश की, लेकिन पश्चिमी देशों के हाथों में खेल रहे श्रीलंका की तब की सरकार ने तवज्जो नहीं दी। भारत के लिए नाक का सवाल बना श्रीलंकाश्रीलंका में गृहयुद्ध भारत में एक बड़ी राजनीतिक लड़ाई भी बन गई। 1983 में युद्ध शुरू होने के बाद, हजारों श्रीलंकाई तमिल भारत भाग आए। इनमें श्रीलंकाई तमिल उग्रवादी भी शामिल थे। इन श्रीलंका के तमिल उग्रवादी समूहों ने अलग मातृभूमि की मांग शुरू कर दी, जिससे भारत के अंदर तमिल अलगाववादियों को बढ़ावा मिल सकता था। ऐसे में भारत ने अपनी एकता और अखंडता की रक्षा के लिए श्रीलंका के गृहयुद्ध को खत्म करने की कोशिशें शुरू कर दी। रॉ ने दिया था तमिलों को प्रशिक्षण!ऐसा दावा किया जाता है कि 1983 में गृह युद्ध शुरू होने के बाद, भारत के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) ने श्रीलंका सरकार से लड़ने के लिए तमिल उग्रवादी समूहों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। इसमें लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (LTTE) जैसे समूह शामिल थे। भारत ने श्रीलंका सरकार पर तमिल समूहों से बात करने और युद्ध समाप्त करने का दबाव भी बनाया। इजरायल की मोसाद श्रीलंका कैसे पहुंचीइजरायल ने दशकों तक श्रीलंका को सैन्य उपकरण और प्रशिक्षण दिया था। 1950 के दशक में, श्रीलंकाई नौसेना ने इजरायल से जहाज खरीदे थे। जैसे ही गृहयुद्ध शुरू हुआ, श्रीलंका की सरकार को एहसास हुआ कि उसे सैन्य मदद की जरूरत है। श्रीलंका की सरकार ने अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी सहित कई पश्चिमी शक्तियों से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने सहायता देने से इनकार कर दिया। ऐसे में पश्चिमी समर्थक जेआर जयवर्धने के नेतृत्व वाली श्रीलंका की सरकार ने मदद के लिए इजरायल की ओर हाथ बढ़ाया। इजरायल मदद करने के लिए सहमत हो गया और इसलिए मोसाद श्रीलंका के गृहयुद्ध में शामिल हो गया। मोसाद ने श्रीलंकाई सेना को दी थी ट्रेनिंग1984 तक, इजरायल की मोसाद श्रीलंकाई सरकार की सुरक्षा और खुफिया जानकारी को व्यवस्थित करने में मदद कर रही थी। इसने तमिल उग्रवादियों से लड़ने के लिए एक खुफिया नेटवर्क और अर्धसैनिक यूनिटों को प्रशिक्षण दिया। पूर्व मोसाद एजेंट विक्टर ऑस्ट्रोव्स्की की एक विवादास्पद पुस्तक के अनुसार, इजरायल इससे भी आगे चला गया। मोसाद ने इजरायल में श्रीलंकाई सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण देना शुरू किया लेकिन, इसने तमिल अलगाववादी समूहों को भी प्रशिक्षित किया। फर्जी परियोजनाओं से श्रीलंका को पैसे भी दिलवाएकथित तौर पर मोसाद ने फर्जी सहायता परियोजना के लिए विश्व बैंक से लाखों डॉलर का धन प्राप्त करके श्रीलंका सरकार को हथियार खरीदने में भी मदद की। मोसाद की मदद से श्रीलंका की सरकार ने महावेली नदी परियोजा की एक फर्जी कहानी तैयार की। इसका उद्देश्य श्रीलंका को सिंचाई में सुधार और बिजली उत्पादन में मदद करना था। इजरायल ने विश्व बैंक, अमेरिका, जापान, जर्मनी और अन्य शक्तियों को श्रीलंका के वित्तपोषित करने के लिए मनाने में मदद की। श्रीलंका को मिले लाखों डॉलर का इस्तेमाल सेना के लिए हथियार खरीदने में किया गया। मोसाद की मौजूदगी से भारत था परेशानभारत उस समय श्रीलंका में इजरायल की मोसाद की उपस्थिति से बहुत चिंतित था। भारतीय खुफिया एजेंसी रॉ तमिल विद्रोहियों को प्रशिक्षण दे रही थी, जबकि मोसाद श्रीलंका सरकार के सैनिकों को उनसे लड़ने में मदद कर रही थी। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने एक बार सार्वजनिक रूप से कहा भी था, "हमें विदेशी सैनिकों की उपस्थिति या किसी भी तरह का हस्तक्षेप पसंद नहीं है।" भारत-इजरायल संबंधों को पहुंचा था नुकसानश्रीलंका में मोसाद की मौजूदगी ने भारत-इजरायल संबंधों को भी प्रभावित किया था। तब दोनों देशों के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध नहीं थे। लेकिन, 1980 के दशक के दौरान, द्विपक्षीय संबंधों में सुधार की कुछ उम्मीद थी। श्रीलंका में इजरायल की उपस्थिति भारत के हितों के विरुद्ध थी, जिससे इस प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा। भारत नहीं चाहता था कि विदेशी ताकतें उसके रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण पड़ोसी देश में दखल दें। 1987 में, भारत ने संघर्ष को समाप्त करने के लिए श्रीलंका सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते में कहा गया था कि श्रीलंका सरकार विदेशी सैन्य और खुफिया बलों को नियुक्त नहीं करेगी। इसका लक्ष्य इजरायल और अमेरिका थे।
Explore more on Newspoint
Loving Newspoint? Download the app now