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(अपडेट) आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार कर भौतिक प्रवृत्ति का मार्ग अपनाना विनाशकारी : राष्ट्रपति

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सिरोही, 4 अक्टूबर . राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के शांतिवन में शुक्रवार को वैश्विक शिखर सम्मेलन का शुभारंभ किया. इस दौरान मुर्मु ने अपने भाषण में विश्व शांति, अध्यात्म, ग्लोबल वार्मिंग पर बात करते हुए केंद्र सरकार की योजनाओं स्वच्छ भारत मिशन, जल जीवन मिशन और आयुष्मान भारत योजना की सराहना भी की. इसके पहले, सुबह मान सरोवर परिसर में एक पेड़ मां के नाम अभियान के तहत पौधरोपण कर 140 करोड़ देशवासियों से पौधरोपण का आह्वान किया.

डायमंड हॉल में आध्यात्मिकता द्वारा स्वच्छ एवं स्वस्थ समाज विषय पर आयोजित सम्मेलन को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि आज विश्व के अनेकों हिस्सों में अशांति का वातावरण व्याप्त है. मानवीय मूल्यों का हृास हो रहा है. ऐसे समय में शांति और एकता की महत्ता और अधिक बढ़ रही है. शांति केवल बाहर ही नहीं, बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है. जब हम शांत होते हैं तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं. इसलिए मन, वचन, कर्म सबको स्वच्छ रखना होगा. आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रवृत्ति का मार्ग अपनाना अंतत: विनाशकारी सिद्ध होता है.

राष्ट्रपति ने कहा कि आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक कार्य का त्याग करना नहीं है. आध्यात्मिकता का अर्थ है अपने भीतर की शक्ति को पहचानकर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना है. कर्मों का त्याग करके नहीं कर्मों का सुधार कर ही बेहतर इंसान बन सकता है. विचारों और कर्मों में शुद्धता जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और शांति लाने का मार्ग है. स्वच्छ और स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए भी यह आवश्यक है. स्वच्छ और स्वस्थ शरीर में ही पवित्र अंत:करण का वास होता है. स्वच्छता केवल बाहरी वातावरण में नहीं बल्कि हमारे विचारों और कर्मों में भी होना चाहिए. हम परमात्मा की संतान हैं. परमात्मा की तरह हम भी विचित्र हैं.

राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि भारत प्राचीन समय से ही आध्यात्मिक क्षेत्र में विश्व समुदाय का मार्गदर्शन करता रहा है. भौतिकता हमें क्षणिक सुख देती है, यह हम सब जानते हैं. जिसे हम असली सुख समझकर उसके मोह में पड़ जाते हैं. यही मोह हमारे दुख व असंतुष्टि का कारण बन जाता है. अध्यात्म हमें अपने आप को जानने का, अपने अंतर्मन को पहचानने का अवसर देता है.

मुर्मु ने कहा कि विश्व ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण की समस्याओं से जूझ रहा है. इससे बचाने के प्रयास करना चाहिए. मनुष्यों को यह समझना चाहिए कि वह इस धरती का स्वामी नहीं है. बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है. हम ट्रस्टी हैं, हम ऑनर नहीं हैं. इसलिए ट्रस्टी के रूप में इस धरती, इस प्लेनेट को हम लोगों को उसी दिशा में संभालना है, आगे बढ़ाना है. हमें विवेक से इस गृह की रक्षा करनी है. मनुष्य की पापुलेशन बढ़ रही है उसी हिसाब से पेड़-पौधे काटे जा रहे हैं. आज मैंने भी मान सरोवर परिसर में एक पेड़ लगाया है. राष्ट्रपति ने 140 करोड़ लोगों से अनुरोध किया है कि अपनी मां के नाम पर या अपने जन्मदिन पर हर साल एक पेड़ जरूर लगाएं.

राष्ट्रपति ने कहा कि केंद्र सरकार देशवासियों के लिए स्वच्छ मन और तन के लिए कई प्रयास कर रही है. सरकार द्वारा जीवामृत और प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित किया जा रहा है. प्राकृतिक खेती से स्वच्छ अन्न, स्वस्छ अन्न से स्वच्छ मन की कड़ी बनती है. कहा जाता है कि जैसा अन्न, वैसा मन. आप जैसा अन्न खाएंगे, वैसी ही मानसिकता बनेगी. उन्होंने कहा कि भारत सरकार देशवासियों के स्वच्छ और स्वस्थ जीवन के लिए अनेक प्रयास कर रही है. स्वच्छ भारत मिशन के हाल ही में दस वर्ष पूरे हुए हैं. इस मिशन ने समाज में स्वच्छता के प्रति जागरुकता बढ़ाई है. जल जीवन मिशन के अंतर्गत हर घर में स्वच्छ जल मुहैया कराने का संकल्प लिया गया है. 78 फीसदी से अधिक ग्रामीण घरों में नल से स्वच्छ जल पहुंचाया जाता है. यह बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि स्वच्छ जल न केवल स्वच्छता बल्कि संपूर्ण शरीर के लिए आवश्यक है.

राज्यपाल हरिभाऊ किसनराव बागड़े ने कहा कि आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि हम अपने आपको जानते हुए कार्य करें तो सब सफल होगा. ब्रह्माकुमारीज़ बहुत ही अच्छे विषय पर वैश्विक शिखर सम्मेलन आयोजित कर रही है. समाज में नैतिकता का पतन हुआ है. आध्यात्मिकता व्यक्तिगत विकास के लिए महत्वपूर्ण है. भारतीय संस्कृति में व्यक्तिव विकास, जीवन की स्वच्छता, विचारों की स्वच्छता पर जोर दिया गया है.

अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी मोहिनी दीदी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प ले कि हम अपने जीवन में दिव्य गुणों की धारणा करेंगे. परमात्मा इस धरा पर विश्व शांति की स्थापना का कार्य कर रहे हैं.

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/ रोहित

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