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दिवेर विजय महोत्सव: शौर्य और स्वाभिमान का प्रतीक

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भूपाल नोबल्स विश्वविद्यालय के एनएसएस द्वारा आयोजित ‘दिवेर विजय महोत्सव’ कार्यक्रम में अनुराग सक्सेना, निर्देशक, प्रताप गौरव केंद्र, उदयपुर ने कहा कि दिवेर युद्ध सिर्फ एक सैन्य विजय की गाथा नहीं है, बल्कि यह स्वाभिमान, साहस, शौर्य और युद्ध कौशल का जीवंत उदाहरण है. यह महोत्सव भावी पीढ़ी में मानवीयता, जीवन मूल्य और संस्कारों का रोपण करता है. उन्होंने कहा कि मेवाड़ की सेना ने इस युद्ध में मुगल सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया था. लेकिन आज की नई पीढ़ी मेवाड़ के इस शौर्य से अपरिचित है.

दिवेर युद्ध का ऐतिहासिक महत्व

अनुराग सक्सेना ने बताया कि हल्दीघाटी के बाद अक्टूबर 1582 में दिवेर का युद्ध हुआ था, जिसमें मुगल सेना की अगुवाई अकबर के चाचा सुल्तान खां कर रहे थे. विजयादशमी के दिन महाराणा प्रताप ने अपनी संगठित सेना को दो हिस्सों में विभाजित कर युद्ध की शुरुआत की. महाराणा प्रताप ने खुद एक टुकड़ी का नेतृत्व किया, जबकि दूसरी टुकड़ी का नेतृत्व उनके पुत्र अमर सिंह ने किया.

इस युद्ध में अमर सिंह ने मुगल सेनापति पर भाले से इतना शक्तिशाली वार किया कि भाला सेनापति और उसके घोड़े को चीरता हुआ जमीन में धंस गया. महाराणा प्रताप ने बहलोल खान पर ऐसी ताकत से वार किया कि उसे घोड़े समेत दो हिस्सों में काट दिया. इस घटना के बाद यह कहावत मशहूर हो गई कि “मेवाड़ के योद्धा सवार को एक ही वार में घोड़े समेत काट देते हैं.

कार्यक्रम की मुख्य बातें

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए बी एन संस्थान के सचिव डॉ महेंद्र सिंह आगरिया ने महाराणा प्रताप को स्वाभिमान का प्रतीक बताया और उनके जीवन से प्रेरणा लेने की बात कही. संस्थान के प्रबंध निदेशक मोहब्बत सिंह राठौड़ ने मुख्य अतिथि अनुराग सक्सेना का शाल, उपरणा ओड़ा कर और प्रतीक चिन्ह भेंट कर अभिनंदन किया.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना समन्वयक डॉ जे एस भाटी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की. कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता पीजी स्टडीज डॉ प्रेम सिंह रावलोत, विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता डॉ रेणू राठौड़, समस्त संकाय सदस्य, बी एन पब्लिक स्कूल और बी एन सीनियर सेकेंडरी स्कूल के विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

इतिहास की विश्वसनीयता

डॉ महेंद्र सिंह आगरिया ने अपने उद्बोधन में कहा कि ऐतिहासिक तथ्यों की वास्तविकता ही इतिहास को विश्वसनीयता प्रदान करती है. उन्होंने छात्रों को इतिहास से प्रेरणा लेने और अपने जीवन में स्वाभिमान और साहस के गुणों को आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया.

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