डूंगरपुर न्यूज़ डेस्क, वागड़ में श्राद्ध पक्ष में पितरों की तृप्ति के साथ ही ग्राम विकास की अनूठी परंपरा का निर्वहन पीढ़ी दर पीढ़ी हो रहा हैं। इसके लिए बकायदा जिस घर में श्राद्ध होता हैं, वहां समाजजन एकत्रित होते है। यहां भोजन व चाय पर चर्चा के दौरान गांव के विकास पर मंथन कर इस दिशा में आगे की रूपरेखा तय की जाती है। इस अनोखी परंपरा की बानगी जसैला सहित आसपास के कई गांवों में देखी जा सकती है। दरअसल, जसैला गांव में श्राद्ध पक्ष को एक अलग ही तरीके से मनाया जाता है। यहां पर गांव के लोग जिस घर में श्राद्ध होता है, वहां एक दिन पहले मिलने वाले न्योते के तहत एकत्रित होते है। जहां चाय व भोजन के दौरान ग्राम विकास पर मंथन होता है।
गांव विकास पर चर्चा व पहल
ग्रामीण बताते है कि पहले गांव में जिस घर में श्राद्ध होता था, वहां दूध लेकर जाते थे। यहां उस दूध से चाय बनती थी एवं चाय के साथ चर्चा शुरू होती थी। इसके बाद खीर व भोजन बनता था। इस दौरान सामूहिक बैठक में पेयजल व्यवस्था, बिजली, सड़क, स्वास्थ, शिक्षा, खेती, सहित गांव के विकास के अन्य बिन्दुओं पर चर्चा की जाती है। इन समस्याओं के समाधान की रूपरेखा तय कर इस पर काम किया जाता है। बीते पांच सात वर्षों के दौरान गांव में सामूहिक सामाजिक नोहरे का जीर्णोद्धार, शिव हनुमान मंदिर जीर्णोद्धार के साथ साथ ही बस स्टैंड पर सिद्धि विनायक मंदिर का निर्माण, समाज पुरोधा केशवजी दादा की मूर्ति की स्थापना आदि कार्य किए है। हाल ही में गांव विकास समिति के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण को पौधरोपण, सुरक्षा की दृष्टि से सीसीटीवी कैमरे, रोड़ लाइट सहित अन्य कार्य किए गए। ग्रामीण बताते है कि गांव के विकास की प्रेरणा स्वर्गीय मोगजी दादा व नटवरलाल पाटीदार से मिली। गांव के मोहन पाटीदार, सुंदर पाटीदार व महेश पाटीदार बताते है कि पूर्वजों की ओर से शुरू पहल आज भी चल रही हैं।
इन गावों में भी निर्वहन
ग्रामीण बताते है कि गुजराती लेउवा पाटीदार समाज क्षेत्र नादिया के जसेला सहित चीखली, बिजौला, साकोदरा आदि कई गावों में आज भी श्राद्ध के दिन सामूहिक चाय पीने व पूर्वजों को याद कर उनके तर्पण व मोक्ष के लिहाज से सामूहिक प्रार्थना करने की परंपरा है। समाज के अन्य चौखलों में पापडी बांटने की भी परंपरा है। जिसका ग्रामीण निर्वहन कर रहे है। सामूहिक रूप से एकत्रित होने के दौरान गांव के विकास पर चर्चा कर कई महत्वपूर्ण निर्णय लेकर उनका क्रियान्वयन किया जाता हैं।
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