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Bikaner एसीबी ने पत्र भेजकर नगर निगम प्रशासन से 1.89 करोड़ रुपए के भुगतान से संबंधित दस्तावेज मांगे

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बीकानेर न्यूज़ डेस्क, बीकानेर नगर निगम में आखिरकार भष्ट्राचार निराेधक ब्यूराे (एसीबी) की एंट्री हाे गई। 5-6 सितंबर काे हुए 1.89 कराेड़ के भुगतान से संबंधित दस्तावेज एसीबी ने निगम प्रशासन से मांगे हैं। मामला खुला एक डीबार फर्म की धरोहर राशि के भुगतान से। दरअसल एक साथ तीन फर्में डीबार की गई थी। तीनों की करीब 10-10 लाख रुपए धरोहर राशि रोक ली गई थी। लेकिन एक फर्म का 9 लाख से ऊपर का भुगतान 6 सितंबर को कर दिया गया। 6 सितंबर को ही आईएएस अधिकारियों की तबादला सूची जारी की गई थी।

बीकानेर के तत्कालीन नगर निगम आरएएस आयुक्त अशोक कुमार आसींजा को श्रीगंगानगर भेजा गया। आईएएस मयंक मनीष को पांच सितंबर को यहां पोस्टिंग दी गई। जिस डीबार फर्म का भुगतान हुआ उसका मामला अभी भी विचाराधीन है। जब इस भुगतान की पड़ताल की तो सामने आया कि अकेले सिर्फ एक फर्म का भुगतान नहीं हुआ बल्कि सिर्फ दो दिनों में 1.89 करोड़ के भुगतान किए गए।खबर ये भी है कि भुगतान पर हस्ताक्षर बीकानेर में नहीं हुए। फाइलें निगम के ही एक अधिकारी की गाड़ी में श्रीगंगानगर ले जाई गईं। यहां से एक स्टाफ साथ गया। उससे भी बड़ी हैरानी ये कि एक ही दिन में बिल बना, फाइल चली। उसी दिन भुगतान पर हस्ताक्षर हुए और उसी दिन आदेश जारी कर भुगतान कर दिया गया।

भुगतान से बड़ा है कोटेशन से काम कराने का खेल

एबीसी की नजर भले ही भुगतान पर है मगर इससे भी बड़ा खेल कोटेशन की फाइलों में है। नियमों के तहत एक साल में सिर्फ 5 लाख का काेटेशन वर्क होना चाहिए पर नगर निगम ने 2022-23 और 2023-24 में 1 करोड़ 80 लाख 65 हजार 892 रुपए का काम करा दिया। इस पर ऑडिट ने भी पैरा बनाया है पर ऑडिट की फिक्र ना तो पार्षदों को है, ना ठेकेदारों को और ना ही नगर निगम प्रशासन को क्योंकि सरकार ने ऑडिट में ऐसे लूप होल छोड़ रखे हैं कि भले ही कितने ही पैरे बन जाएं पर किसी कर्मचारी, अधिकारी का कुछ नहीं बिगड़ता।

हैरानी की बात ये है कि नगर निगम प्रशासन को ऑडिट ने पैरा बना कर दिया पर निगम प्रशासन फिर भी इसकी गहनता से जांच नहीं करा रहा। अगर इस मामले की जांच हो बड़ा खेल सामने आएगा। बीते 10 सालों में नगर परिषद से नगर निगम बन गया। सवा सौ से ज्यादा ऑडिट पैरे बन गए पर आज तक किसी भी कार्मिक को ना तो कोई सजा हुई। ना उसे कोई नोटिस मिला। ना चार्जशीट बनी। ऑडिट पैरा फाइलों में बंद रह गए।

ये हुआ कोटेशन में

स्थानीय निधि अंकेक्षण विभाग दल संख्या 6 के पास दस्तावेज आडिट के लिए पहुंचे। उन्हाेंने दाे साल के दस्तावेज खंगाले ताे कामाें की संख्या 205 और राशि एक कराेड़ 80 लाख 65 हजार 892 रुपए पहुंच गई। नियमानुसार यह गलत था। टीम ने 12 सितंबर काे निगम कमिश्नर काे इस संबंध में पत्र लिखा और कहा कि समान कार्य पद्धति के काम काेटेशन से कराए गए। एक लाख से कम खर्चे के काम थे। इनकी राशि पाैने दाे कराेड़ से ऊपर हाे गई। हैरानी की बात ये है कि इसमें से ज्यादा काम कराने वाली फर्में गिनी-चुनी हैं। एक-एक फर्म को 40 से ज्यादा काम दिए गए। यानी बिना टेंडर के फर्मों ने 30 से 35 लाख तक के काम करा दिए। इस मामले की जांच की उम्मीद लोग निगम प्रशासन से कर रहे थे लेकिन निगम प्रशासन ने भी आंखें मूंद ली। "हां, एसीबी ने इस मामले में जानकारी मांगी है। पहले मौखिक तौर पर पूछा था। अब लिखित में प्रकरण से जुड़े कागजात मांगे हैं। निगम प्रशासन उनको जल्दी ही पूरी रिपोर्ट और कागजात सौंपेगा।"

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