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हरियाणा और जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव: राहुल गांधी के क़द पर क्या होगा असर?

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चार जून 2024 को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद राहुल गांधी ने था, ''भारत की जनता ने एकजुट हो कर साफ कह दिया है - हम मोदी जी को नहीं चाहते!''

संविधान की कॉपी दिखाते हुए राहुल गांधी कहते नज़र आए थे कि ये चुनाव संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का चुनाव था.

लोकसभा चुनाव के इन नतीजों के बाद राहुल गांधी और विपक्ष के तेवर काफी आक्रामक नज़र आए.

अग्निवीर, जातिगत जनगणना, पेंशन स्कीम, लेटरल एंट्री स्कीम समेत कई मुद्दों पर राहुल गांधी और विपक्ष ने सरकार को सड़क से लेकर संसद तक घेरते हुए आक्रामक रुख अपनाया. लेटरल एंट्री स्कीम जैसे मुद्दों पर तो सरकार को ''यू-टर्न'' तक लेना पड़ा.

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ऐसे में, जब क़रीब ढाई महीने बाद जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के चुनाव की तारीख़ों का एलान हुआ, तो कांग्रेस प्रचार और तैयारियों को लेकर आत्मविश्वास में नज़र आ रही थी.

राहुल गांधी की ओर से भी जीत के दावे किए जा रहे थे.

वोटिंग से पांच दिन पहले में राहुल ने लिखा था, ''हरियाणा में 'दर्द के दशक' का अंत करने के लिए कांग्रेस पार्टी पूरी शक्ति के साथ एकजुट है, संगठित है, समर्पित है.'' ख़ास बात ये थी कि इस तस्वीर में राहुल के एक तरफ़ भूपेंद्र हुड्डा थे और दूसरी तरफ़ कुमारी सैलजा.

image X/RahulGandhi कुमारी सैलजा और भूपेंद्र हुड्डा के साथ राहुल गांधी (30 सितंबर, 2024)

अब 8 अक्टूबर को आए नतीजों में कांग्रेस को उम्मीदों के उलट हरियाणा में हार का सामना करना पड़ा है. पार्टी ने यहां की 90 विधानसभा सीटों में से 37 सीटें और 39% वोट शेयर हासिल किया है.

वहीं, जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के गठबंधन को जीत मिली है, लेकिन कांग्रेस के खाते में महज़ 6 सीटें आईं हैं, जिनमें से एक सीट जम्मू क्षेत्र से मिली है, जो इस क्षेत्र में कांग्रेस का अब तक का सबसे ख़राब प्रदर्शन है.

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हरियाणा में हार और जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस की गठबंधन वाली जीत के बाद कांग्रेस के प्रदर्शन और राहुल गांधी के नेतृत्व पर एक बार फिर चर्चा शुरू हो चुकी है.

राहुल गांधी का 'प्रदर्शन'

वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि लोकसभा में जिस तरह से कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन किया था, उसके बाद जो पार्टी से उम्मीदें थीं, हरियाणा में उन उम्मीदों पर राहुल गांधी खरे नहीं उतर पाए.

वो आगे कहते हैं, ''वो ऐसा नहीं कर पाए, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि सब खत्म हो गया है. राजनीति में एक चुनाव हारना अंत नहीं होता, ये हमेशा नई शुरुआत होती है.''

वो ये भी कहते हैं कि ''कांग्रेस के बारे में जो परसेप्शन बन रहा था कि कांग्रेस मजबूत हुई है, वो भ्रम टूट गया है. अब फिर से लोग कहना शुरू कर रहे हैं कि सीधे मुकाबले में कांग्रेस बीजेपी के सामने कमजोर पड़ती है.'' हालांकि, विनोद शर्मा मानते हैं कि अगर कांग्रेस गठबंधन महाराष्ट्र चुनाव जीत जाता है तो इस छवि में सुधार होगा.

वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस मानती हैं कि हरियाणा चुनाव से राहुल गांधी के प्रदर्शन को आंका नहीं जा सकता. वो कहती हैं, ''हार का ठीकरा अगर फूटेगा तो वो भूपेंद्र हुड्डा के सिर पर फूटेगा, राहुल गांधी पर नहीं.''

वो ये भी मानती हैं कि हरियाणा के चुनाव में बीजेपी का पलड़ा हर तरीके से कांग्रेस से भारी रहा है और इस गिरावट का असर कांग्रेस और राहुल गांधी दोनों पर पड़ेगा. हरियाणा विधानसभा चुनाव नतीजों में बीजेपी को 90 विधानसभा सीटों में से बहुमत से ज़्यादा 48 सीटें हासिल हुई हैं और क़रीब 40 प्रतिशत वोट शेयर मिला है.

वहीं, जम्मू-कश्मीर में पार्टी के प्रदर्शन पर वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनुराधा भसीन कहती हैं कि भले ही नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस गठबंधन 90 विधानसभा सीटों में से 49 जीतकर सरकार बनाने जा रहा है, लेकिन कांग्रेस का प्रदर्शन ख़ासतौर से जम्मू क्षेत्र में ख़राब रहा है.

image ANI जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रचार के दौरान फारूक़ अब्दुल्लाह और राहुल गांधी (फाइल फोटो)

भसीन कहती हैं, ''कश्मीर में तो गठबंधन को निर्णायक जनादेश मिला है, लेकिन जम्मू के क्षेत्र में, जहां उनकी ख़ास पकड़ रही है, वहां केवल एक ही सीट मिली है, जो 2014 के प्रदर्शन से भी ख़राब है.''

''अगर उनकी परफॉर्मेंस देखी जाए, तो चाहे गलत उम्मीदवारों का चयन हो या उन्होंने एंटी-इनकंबेंसी फैक्टर पर ध्यान नहीं दिया हो, वे इसका फायदा नहीं उठा सके. ये सारी चीजें, मेरे ख्याल से, कांग्रेस की सबसे ख़राब परफॉर्मेंस की वजह रही हैं.''

हालांकि, वो ये मानती हैं कि पूरा दोष राहुल गांधी पर नहीं मढ़ा जा सकता.

भसीन का कहना है, ''ये तो पार्टी का मसला है, सारा दोष राहुल गांधी पर नहीं डाला जा सकता, न कांग्रेस की जीतों का श्रेय और न कांग्रेस की जो खामियां हैं. लेकिन वो पार्टी को लीड कर रहे हैं, एक स्टार प्रचारक हैं, तो उनकी गैर-मौजूदगी में उन्होंने ज़्यादा फोकस कश्मीर पर किया, जबकि जम्मू पर बहुत कम ध्यान दिया. हालांकि, दो बार आए और रैलियाँ भी कीं, लेकिन पार्टी की जो प्रेजेंस एक मजबूत तरीके से होनी चाहिए थी, वो नहीं रही.''

हालांकि, विनोद शर्मा मानते हैं कि राहुल गांधी की कश्मीर में अच्छी छवि का असर नेशनल कॉन्फ्रेंस के प्रदर्शन में भी दिखा है.

''इंडिया गठबंधन'' में राहुल गांधी की स्वीकार्यता पर कोई प्रभाव पड़ेगा?

राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और विपक्ष के सबसे बड़े चेहरे भी हैं. लोकसभा चुनाव के बाद वो काफी सक्रिय नज़र आए. इन महीनों में जब कई मुद्दों पर राहुल गांधी सरकार को घेरते दिखे, तब उन्हें इंडिया गठबंधन की दूसरी पार्टियों का भी समर्थन मिला.

ऐसे में अब इन चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन का असर राहुल गांधी की इंडिया गठबंधन में स्वीकार्यता पर क्या पड़ेगा?

इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार अदिति फडनीस कहती हैं कि इंडिया गठबंधन में राहुल गांधी की जिस तरह की छवि है, इस हार का उस पर कोई असर नहीं होगा. फडनीस कहती हैं, ''मुझे नहीं लगता कि इंडिया गठबंधन इसे राहुल गांधी की हार मानेगा, हार हुई है तो वो भूपेंद्र हुड्डा जी की हुई है. मुझे नहीं लगता कि इंडिया गठबंधन के केजरीवाल या कोई और ये कहेगा कि राहुल, आपने हमें हराया.''

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अदिति ये भी मानती हैं कि इस हार के बाद भी राहुल गांधी के चुनावी तेवर, उनके बोलने के लहज़े और सरकार पर कटाक्ष करने के तरीके में कोई कमी नहीं आएगी.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा कहते हैं कि हरियाणा की हार से इंडिया गठबंधन के सहयोगियों का विश्वास कांग्रेस पर कम होता दिखेगा. वो कहते हैं, ''कांग्रेस अपनी तलवार पर खुद ही गिर गई. अपने ही अंदर के विरोधाभासों से हार गई और एक जीता हुआ चुनाव हार गई. इससे कांग्रेस के आत्मविश्वास पर सवाल उठते हैं और इंडिया गठबंधन के सहयोगियों का भी कांग्रेस पर विश्वास कम होता है.''

अनुराधा भसीन कहती हैं कि जम्मू-कश्मीर और हरियाणा के नतीजों का राहुल गांधी के नेतृत्व पर क्या असर पड़ेगा, ये कहना जल्दबाजी होगी. ''अभी दो राज्यों के चुनाव बाकी हैं, जिनमें महाराष्ट्र और झारखंड शामिल हैं.''

महाराष्ट्र-झारखंड चुनाव में राहुल गांधी के सामने चुनौती बढ़ गई है?

महाराष्ट्र और झारखंड में इस साल के आख़िरी में विधानसभा चुनाव हो सकते हैं. महाराष्ट्र में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी – शरद पवार का गठबंधन है. झारखंड में कांग्रेस और हेमंत सोरेन की पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठबंधन है. आरजेडी और माले भी इस गठबंधन का हिस्सा हैं.

विश्लेषक मानते हैं कि आगामी झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव में हरियाणा के नतीजों का असर होगा. ऐसे में अब कांग्रेस और राहुल गांधी की चुनौती कुछ हद तक बढ़ जाएगी.

अदिति फडनीस कहती हैं कि इस बात में कोई शक नहीं कि कांग्रेस का पलड़ा हल्का हुआ है.

वो कहती हैं, ''टिकट बंटवारे और दूसरी चीज़ों में गठबंधन की पार्टियां कांग्रेस पर दबाव डाल सकती हैं.''

विनोद शर्मा कहते हैं कि महाराष्ट्र और झारखंड दोनों ही जगहों पर सीटों के बंटवारे में हरियाणा के चुनाव का असर दिखेगा. ''महाराष्ट्र में कांग्रेस अब फायदे की स्थिति में समझौता नहीं कर पाएगी. अगर पार्टी हरियाणा जीत जाती तो फायदे की स्थिति में होती.''

image ANI भारत जोड़ो न्याय यात्रा के एक कार्यक्रम में राहुल गांधी और उद्धव ठाकरे (फाइल फोटो) हरियाणा में 'गुटबाज़ी' को कैसे संभालेंगे राहुल गांधी?

हरियाणा में चुनावी कैंपेन की शुरुआत से लेकर नतीजों के एलान तक पार्टी के भीतर गुटों के टकराव की बातें सामने आती रहीं. जानकार बताते हैं कि राज्य में कांग्रेस के उम्मीदवारों को इस नज़र से देखा जा रहा था कि कौन भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खेमे से है और कौन कुमारी सैलजा के क़रीबी है.

विश्लेषक मानते हैं कि इस खेमेबाज़ी का भी असर चुनावी नतीजों पर पड़ा है. तो क्या इसे कांग्रेस और राहुल गांधी सुलझा नहीं पाए?

विनोद शर्मा कहते हैं, ''सैलजा जी और हुड्डा जी के बीच मनमुटाव हुआ, तो दोनों का हाथ मिलवा दिया गया. लेकिन हाथ मिलवाने से मन थोड़ी मिलते हैं.''

वो आगे कहते हैं, ''पार्टी ये मान सकती है कि ये उनकी खामी थी कि जो अंदरखाने टकराव चल रहा था, उसे रोक नहीं पाए. इस स्थिति में जो लीडरशिप का काम है, वो होना चाहिए था. दोनों नेताओं को बिठाकर, उन्हें कहना चाहिए था कि 'सीधे हो जाओ और इस तरह से चुनाव लड़ो, वरना तुम्हारा भी नुकसान होगा और पार्टी का भी.'''

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हालांकि, अदिति फडनीस कहती हैं कि इस मामले में राहुल गांधी की परिपक्वता दिखी है. वो कहती हैं, ''एक तरह से, जिस तरह के सवाल राजस्थान में लीडरशिप को लेकर उठे थे, उस तरह के सवाल यहां उतने मुखर नहीं हुए, जितना हम सोच रहे थे.''

बता दें कि राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच का विवाद सार्वजनिक हो गया था और इसका खामियाजा पार्टी को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा.

अदिति मानती हैं कि इन चुनावों में राहुल गांधी ने भूपेंद्र हुड्डा को खुली छूट दी थी, ऐसे में ''हार का ठीकरा भी हुड्डा के सिर ही फूटेगा.''

वरिष्ठ पत्रकार श्रवण गर्ग हरियाणा के इन नतीजों को 'गुटबाज़ी' जैसी दिक्कतों को खत्म करने के मौके के तौर पर देखते हैं. बीबीसी हिंदी से बातचीत में वो कहते हैं, ''इस हार के बाद अब हरियाणा में नई लीडरशिप उभर कर आएगी. कांग्रेस को नए सिरे से खड़ा करने के लिए राहुल गांधी को मौका चाहिए था. अगर ये लोग जीत जाते, तो पांच साल तक ये मौका नहीं मिलता. इसलिए मुझे लगता है कि कांग्रेस पर इस नतीजे का बड़ा प्रभाव पड़ेगा.''

जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस का प्रदर्शन और राहुल गांधी

जम्मू-कश्मीर के नतीजों पर वरिष्ठ पत्रकार अनुराधा भसीन मानती हैं कि इस गठबंधन का प्रदर्शन और बेहतर हो सकता था.

वो कहती हैं, ''कांग्रेस ने अपनी सारी ऊर्जा हरियाणा में लगाई थी, जम्मू पर उन्होंने कम ध्यान दिया था. कुछ सीटों पर गठबंधन भी विफल रहा, जहां बीजेपी को फ़ायदा मिला. जम्मू में जो मौजूदगी कांग्रेस की होनी चाहिए थी, वो नहीं रही.''

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वरिष्ठ पत्रकार विनोद शर्मा भी मानते हैं कि जम्मू में कांग्रेस ने ''सही तरीक़े से चुनाव नहीं लड़ा.'' वो ये भी कहते हैं कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस को गठबंधन से मदद ज़रूर मिली. राहुल गांधी की भूमिका पर वो कहते हैं, ''ये बात सच है कि राहुल गांधी की अपनी छवि कश्मीर में बहुत अच्छी है, और इससे नेशनल कॉन्फ्रेंस को फायदा हुआ है.''

हालांकि, विनोद शर्मा और अनुराधा भसीन मानते हैं कि जम्मू-कश्मीर में कुल मिलाकर ''लोकतंत्र की जीत'' हुई है.

विनोद शर्मा कहते हैं, ''कश्मीर में जो चुनाव हुआ है, उसमें कांग्रेस भी शरीक है, नेशनल कॉन्फ्रेंस भी शरीक है, और बीजेपी भी शरीक है. सबसे बड़ी बात ये है कि एक नेशनल पार्टी ने एक अहम रीज़नल पार्टी के साथ गठबंधन किया है, और दोनों मिलकर सरकार बनाएंगे. ये एक अच्छा संदेश और बड़ा सकारात्मक सिग्नल है.''

अनुराधा भसीन कहती हैं, ''अब अगर आप कश्मीर घाटी के नतीजों को देखें, तो वहां सिर्फ नेशनल कॉन्फ्रेंस ने ही नहीं जीता है, बल्कि घाटी का वोटर राजनीतिक रूप से काफी शिक्षित और जागरूक है. उन्होंने एक निर्णायक जनादेश दिया है. वोटरों की जीत हुई है.''

जवान, किसान और पहलवान का मुद्दा

लोकसभा चुनाव के पहले से अब तक जवान, किसान और पहलवान का मुद्दा राहुल गांधी और कांग्रेस के एजेंडे में शामिल रहा है. अग्निवीर योजना के ख़िलाफ़ राहुल गांधी ने संसद से सड़क तक आवाज़ बुलंद की थी, और चुनावों में भी इसे मुद्दा बनाया गया था. इसी तरह किसान आंदोलन और पहलवानों के आंदोलन का मुद्दा भी हरियाणा चुनाव में छाया रहा.

image X/@INCIndia पहलवान बजरंग पुनिया और विनेश फोगाट के साथ राहुल गांधी (फ़ाइल फोटो)

अब हरियाणा के जनादेश में इन बड़े मुद्दों के बावजूद कांग्रेस बढ़त नहीं बना सकी, तो कहां चूक रह गई?

अदिति फडनीस कहती हैं कि जवान, किसान और पहलवान के साथ ही रोज़गार, ऐसे मुद्दे हैं, जो हमारे देश के सबसे बड़े मुद्दों में से एक हैं.

वो कहती हैं, ''लेकिन इस विधानसभा चुनाव में लोगों ने हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार और नरेंद्र मोदी के काम को पूरी तरह नकारा नहीं. साथ ही निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी जो वोट काटे, उसकी वजह से भी ऐसे नतीजे आ सकते हैं.''

विनोद शर्मा इस सवाल पर आगे बात करते हुए कहते हैं कि आगामी महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में मुद्दे वहां के स्थानीय होंगे और उसी हिसाब से कांग्रेस को चुनाव लड़ना होगा.

आख़िर में राहुल गांधी के ''प्रदर्शन'' पर विनोद शर्मा कहते हैं कि उनके पूरे दृष्टिकोण को एक या दो चुनावों से नहीं आंका जा सकता है.

वो कहते हैं, ''मुझे एक बार अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था, 'मैंने बस एक चुनाव हारा है, लड़ाई जारी है.' एक चुनाव हारने से लड़ाई खत्म नहीं होती. राजनीति एक निरंतर चलने वाली लड़ाई है.''

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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