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घायल, अनाथ और गहरा सदमा: सात अक्टूबर के बाद कैसे बदली लोगों की ज़िंदगी

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BBC बाएं से दाएं: अब्दुल्ला, बाट्शेवा, अब्दुलरहमान और क्रिस्टीना

बाट्शेवा को यह नहीं पता कि उनके पति ज़िंदा हैं या उनकी मौत हो गई, अब्दुल्ला किशोरावस्था में अनाथ हो गए, क्रिस्टीना और अब्दुलरहमान को उम्मीद है कि वो फिर से चल पाएंगे.

बीबीसी को इसराइल, ग़ज़ा, लेबनान और वेस्ट बैंक में रह रहे इन लोगों ने बताया कि पिछले साल सात अक्टूबर को हुए हमले के बाद उनकी ज़िंदगी कैसे बदल गई.

एक साल हो गया जब हमास ने इसराइल पर हमला कर 1200 लोगों की हत्या कर दी थी और 251 लोगों को बंधक बना लिया था.

इसराइल ने इसके जवाब में ग़ज़ा में बड़े पैमाने पर हवाई और ज़मीनी हमले किए. हमास द्वारा संचालित स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक इसमें 41,000 से अधिक लोगों की मौत हुई है.

image BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए ये भी पढ़ें-
'सबसे मुश्किल है नहीं पता होना' image Batsheva Yahalomi ओहद याहलोमी और बाट्शेवा अपने बेटे ऐथान और याऐल के साथ

सात अक्टूबर से एक दिन पहले ओहद याहलोमी और उनकी 10 साल की बेटी याऐल पास के ग्राउंड में जानवरों की तलाश में गए. याऐल के बड़े भाई ऐथान (12) अपने दोस्तों के साथ फुटबॉल खेल रहे थे. ओहद की पत्नी बाट्शेवा अपनी सबसे छोटी बेटी के साथ घर पर थीं जो कि अभी दो साल की भी नहीं थी.

ग़ज़ा की सीमा से लगभग एक मील दूर दक्षिण इसराइल में 400 से कम लोगों का समुदाय नीर ओज किबुत्ज़ में रह रहा है. यहां का जीवन काफी अलग है.

45 वर्षीय बाट्शेवा ने कहा, "हमें वहां का जीवन बहुंत पसंद था और हम काफी सीधे हैं. यह हमारे लिए स्वर्ग जैसा था.”

अगले दिन की सुबह परिवार रॉकेट हमले को लेकर बजाए जाने वाले अलर्ट सायरन के बजने से जगा.

लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद ऐसे संकेत मिले कि ये सिर्फ कोई रॉकेट हमला नहीं था. बाहर से लोगों के 'अल्लाहु अकबर' कहने और गोलियों की आवाज़ सुनाई दी.

कई घंटों तक परिवार भयभीत होकर अपने 'सेफ रूम' में इंतज़ार करता रहा, लेकिन हमलावर घर में घुसने की कोशिश करने लगे. इसके बाद अपने परिवार के लोगों को बचाने के लिए ओहद ने 'सेफ रूम' छोड़ दिया और हमलावरों को रोकने का प्रयास करने लगे.

बाट्शेवा ने बताया, "वह हर कुछ मिनटों में हमसे कहते थे कि वो हमसे प्यार करते हैं."

image Batsheva Yahalomi बाट्शेवा और उनके पति नीर ओज किबुत्ज़ बेहतर जीवन के लिए रहने गए थे

कलाश्निकोव राइफल और ग्रेनेड जैकेट पहने हमलावर घर में घुसे और 'सेफ रूम' में प्रवेश करने से पहले ओहद को गोली मार दी.

बाट्शेवा ने बताया, "हमलावरों ने हम पर राइफल तानते हुए अंग्रेज़ी में कहा कि ग़ज़ा चलो. मैं इसके बाद तुरंत समझ गईं कि वो क्या चाहते हैं."

बाट्शेवा और उनकी बेटियों को एक मोटरसाइकिल पर ग़ज़ा ले जाने के लिए बिठाया गया. वहीं ऐथान को विदेशी वर्कर के साथ दूसरी मोटरसाइकिल पर भेजा गया. मोटरसाइकिल के फंसने से बाट्शेवा और उनकी बेटियां भागने में सफल रहीं, लेकिन ऐथान और पिता को ले जाया गया.

ऐथान को हमास ने ग़ज़ा में 52 दिनों तक बंधक बनाकर रखा. बाट्शेवा ने बताया कि ऐथान को ज़बरदस्ती सात अक्टूबर को बनाए गए वीडियो दिखाए गए.

"उसने (बेटे) देखा कि कैसे उन्होंने लोगों, बच्चों और महिलाओं की क्रूरतापूर्वक हत्या कर दी."

बाट्शेवा ने बताया कि ऐथान को नवंबर में बंधकों की रिहाई के लिए हुए समझौते के बाद बाद छोड़ा गया. हमास और इसराइल के बीच चल रहे संघर्ष के बाद से यानी पिछले एक साल में सिर्फ एक बार ये समझौता हुआ है.

हथियारबंद फ़लस्तीनी गुट ने जनवरी में ओहद का वीडियो जारी किया और इसमें वो घायल दिख रहे हैं, लेकिन ज़िंदा हैं. इसके बाद से गुट कह रहा है कि इसराइली हमले में वो मारे गए.

वहीं इसराइली सेना ने बाट्शेवा को बताया कि वो ओहद को लेकर किए जा रहे दावे की पुष्टि नहीं कर सकते या उनकी स्थिति को लेकर कोई अपडेट नहीं दे सकते.

पिछले साल सात अक्टूबर को हुए हमले में नीर ओज सबसे अधिक प्रभावित हुए समुदाय में से एक है. कई दर्जन नागरिकों को मार दिया गया या फिर अपहरण कर लिया गया. जले हुए घर इस बात की याद दिलाते हैं कि क्या हुआ था.

बाट्शेवा ने कहा कि उनके बच्चों को बुरे सपने आते हैं और लगभग एक साल से मेरे साथ उसी बिस्तर पर सो रहे हैं जिस पर कि मैं सोती हूं. मेरे बच्चे बार-बार पूछते हैं कि पापा कब लौटेंगे. ऐथान के तो बाल झड़ रहे हैं.

"सबसे मुश्किल है ये नहीं पता होना कि उनके (ओहद) साथ क्या हो रहा है. वो ज़िंदा हैं या नहीं. हम ऐसे अपना जीवन नहीं बिता सकते."

'बेहतर होता अगर मैं शहीद हो जाता' image BBC अब्दुल्ला के हाथ में लगी चोट

हमास ने जब सात अक्टूबर को इसराइल पर हमला किया था तो अब्दुल्ला क़रीब 13 साल के थे. इससे पहले उनका जीवन उत्तरी ग़ज़ा के पास स्थित अल-तावान में स्कूल, दोस्तों के साथ फुटबॉल खेलने, समुद्र बीच पर घूमने, माता-पिता, भाई और दो बहनों के साथ मस्ती करते हुए बीतता था.

अब्दुल्ला के जन्मदिन से एक दिन पहले लोगों को दक्षिण की ओर जाने को कहा गया. इसके तुरंत बाद अब्दुल्ला के परिवार ने जल्दी-जल्दी में ज़रूरत का सामान बांधा और उस सलाह अल-दीन रोड की ओर निकल पड़े जिसे कि इसराइली सेना ने कहा था कि यहां से लोग निकल सकते हैं.

लेकिन जब वो सलाह अल-दीन रोड की तरफ़ बढ़े तो वाहन पर इसराइली हवाई हमला हुआ.

अब्दुल्ला ने कहा, "मैं और मेरा भाई अहमद इस हमले से हवा में उछलते हुए कार से बाहर आ गए."

जब हवाई हमला हुआ था तो अहमद 16 साल के थे और उसके एक पैर को काटना पड़ा. दूसरे पैर में मेटल प्लेट्स लगी हुई है.

अब्दुल्ला के हाथ, सिर, कमर और मुँह में चोट लगी और उसके पेट पर दो लंबे निशान दिखाई देते हैं.

अब्दुल्ला, उसके परिवार और कई चश्मदीदों ने बीबीसी से कहा कि ड्रोन के माध्यम से मिसाइल हमला किया गया था.

वहीं इस दावे को इसराइली सेना ने ख़ारिज करते हुए कहा कि उसने उस दिन नागरिकों के काफिले पर हमला नहीं किया था और इसे झूठे आरोप करार दिया.

बीबीसी से प्रवक्ता ने कहा, "जांच में ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जो ये साबित करता हो कि आईडीएफ़ ने हमला किया था."

image BBC अब्दुल्ला, मिन्ना (बाएं) और हाला (बीच में)

अब्दुल्ला ने बताया कि उन्हें याद है कि कैसे अस्पताल के कर्मी उनके माता-पिता को लेकर पूछे जा रहे सवालों को टाल रहे थे. 'मेरे कज़िन और दादी ने मुझे जो बताया उसके बारे में मुझे पहले से ही लग रहा था.'

"मुझे इसके बारे में हमेशा से पता था."

वो आगे कहते हैं, "मैं अगर शहीद हो गया होता तो यह उससे अच्छा होता जो अब मेरे साथ हो रहा है."

अब्दुल्ला हाथ में लगी चोट के निशान की तरफ देखते हुए कहते हैं, "मुझे ऐसा लग रहा है कि मेरा हाथ पहले ही काट दिया गया है. उन्होंने इसे ठीक करने की कोशिश की, लेकिन सब बेकार रहा."

अब्दुल्ला और उनकी दो बहनें मिन्ना (18) और हाला (11) अपनी दादी के साथ दक्षिण ग़ज़ा के इलाके ख़ान यूनिस में रह रहे हैं.

जिस दिन माता-पिता की हमले में मौत हुई तो उस दिन अब्दुल्ला की दोनों बहनें उत्तरी ग़ज़ा में ही थीं क्योंकि वाहन में उनके लिए जगह नहीं थी. वहीं अहमद इलाज के लिए क़तर में रह रहे हैं.

अब्दुल्ला ने कहा, "हँसी और अच्छा समय चला गया. हमने अपने मां, पिता और चाचा को खो दिया."

"ये लोग पूरे परिवार के लिए ख़ुशी का ज़रिया थे."

"हम उनके बिना सही से नहीं जी रहे हैं."

"हम स्कूल जाते थे, खेलते और हँसते थे. ग़ज़ा ख़ूबसूरत हुआ करता था, लेकिन अब सब ख़त्म हो गया."

अब्दुल्ला ने बताया कि उसका अपने दोस्तों से संपर्क नहीं हो पाता और कई युद्ध में मारे जा चुके हैं.

"इसराइल को मेरा ये मैसेज है. आपने हमारे साथ ये किया. आपने मेरे माता-पिता की जान ले ली. मेरी शिक्षा छीन ली. आपने मुझसे मेरा सबकुछ ले लिया."

'मुझे राहत मिली कि मैंने केवल एक पैर खोया है' image Handout क्रिस्टीना ने कहा कि वो अपने काम पर लौटना चाहती हैं

क्रिस्टीना असी ने कहा, "मैं अपनी पहचान फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर बताती थी, लेकिन आज मैं अपनी पहचान वॉर क्राइम सर्वाइवर बताती हूं."

क्रिस्टीना न्यूज़ एजेंसी एएफ़पी के लिए फ़ोटो जर्नलिस्ट के तौर पर अपने देश लेबनान में दक्षिणी सीमा पर हो रही लड़ाई को कवर करने गई थीं.

सात अक्टूबर को किए गए हमले को देखते हुए हथियारबंद गुट हिज़्बुल्लाह ने इसराइल पर रॉकेट हमला शुरू कर दिया था. इसने बाद में बड़े संघर्ष का रूप ले लिया.

पिछले साल 13 अक्टूबर को क्रिस्टीना और पत्रकारों का एक समूह लेबनान के दक्षिण में उस गांव में गया था जो कि इसराइल की सीमा से करीब एक किलोमीटर दूर था. यह वो गांव था जहां झड़प हो रही थी.

29 वर्षीय क्रिस्टीना ने कहा कि हमने प्रेस लिखी हुई जैकेट और हेलमेट पहना हुआ था. वहीं कार के बोनट पर पीले रंग की टेप से टीवी लिखा हुआ था. लगा था कि हम सुरक्षित हैं.

उन्होंने बताया कि 'अचानक से गोलीबारी होने लगी. मुझे याद है कि बगल वाली कार में आग लगी हुई थी और मैं भागने की कोशिश करने लगी. बुलेट प्रूफ जैकेट के भारी होने और कैमरे के कारण हिलने में परेशानी हो रही थी.'

"मैं देख सकती थी कि मेरे पैर से ख़ून निकल रहा है. मैं खड़ी नहीं हो पर रही थी."

image Handout क्रिस्टीना के घायल होने से पहले की फोटो

12 दिनों के बाद क्रिस्टीना की ऑंख अस्पताल में खुली और उन्होंने कहा, "मुझे राहत मिली कि मैंने सिर्फ एक पैर खोया."

हमले में 37 वर्षीय रॉयटर्स के पत्रकार इसाम अब्दुल्ला की मौत हो गई और छह घायल हो गए. इसको लेकर क्रिस्टीना ने कहा, "मुझसे नर्स ने पूछा कि किसकी जान गई तो मैंने ऑनलाइन उनका नाम देखा. मैं हेडलाइन पर विश्वास नहीं कर पाई."

यूनाइटेड नेशंस इंटरिम फोर्स इन लेबनान ने जांच करने के बाद बताया कि अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करते हुए इसराइल ने 120 एमएम के गोले 'साफ़तौर से पहचाने जाने वाले पत्रकारों' के ग्रुप पर दागे थे.

कई मानवाधिकार समूहों ने कहा कि इस मामले की जांच संभावित युद्ध अपराध के रूप में की जानी चाहिए.

आईडीएफ ने बीबीसी से कहा कि उसके सैनिकों को इसराइली क्षेत्र में "आतंकवादियों की घुसपैठ" का शक हुआ था. इसे रोकने के लिए टैंक और आर्टिलरी फायर का इस्तेमाल किया गया. मामले को देखा जा रहा है.

क्रिस्टीना ने कहा कि उन्हें गुस्सा आता है और जो उनके साथ हुआ उसको लेकर चिढ़ होती है.

"आप हर चीज़ पर भरोसा खो देते हैं. अंतरराष्ट्रीय क़ानून और अंतरराष्ट्रीय समुदाय पर मुझे पहले पत्रकार होने के तौर पर विश्वास था."

दुनिया भर में घायल और मारे गए पत्रकारों के सम्मान में जुलाई में एएफपी के अपने सहकर्मियों के साथ क्रिस्टीना व्हीलचेयर पर ओलंपिक की मशाल लेकर चलीं.

उन्हें उम्मीद है कि वो एक बार फिर से ग्राउंड पर पत्रकार के तौर पर उतर सकेंगी.

"जिस दिन मैं खड़ी हो सकूंगी, चल सकूंगी, कैमरा लेकर अपने काम पर लौटूंगी और वो चीज़ फिर से कर सकूंगी जिससे मुझे प्यार है तो तब मेरी जीत होगी."

'मैंने चिल्लाना शुरू किया लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया' image Family photo अब्दुलरहमान एक सितंबर से अस्पताल में हैं

अब्दुलरहमान अल अश्कर ने बताया कि शाम का समय था. वो भुट्टा बेचने के बाद सिगरेट पीते हुए अपने दोस्त लैथ शावनेह के साथ घूम रहे थे.

18 वर्षीय अब्दुलरहमान 1 सितंबर की रात को याद करते हुए कहते हैं, "अचानक बमबारी हो जाती है."

दोनों इसराइल के कब्जे़ वाले वेस्ट बैंक में स्थित सिलाट अल हरिथिया गांव में हुए इसराइली एयरक्राफ्ट की ज़द में आ जाते हैं.

अब्दुलरहमान ने बताया कि उन्हें रॉकेट की आवाज़ सुनाई देती है, लेकिन बचने का समय नहीं होता. उन्होंने कहा, "मैं सिर्फ एक क़दम पीछे ले सका."

"मैंने चिल्लाना शुरू किया लेकिन लैथ ने कोई जवाब नहीं दिया."

16 वर्षीय लैथ की मौत हो जाती है और अब्दुलरहमान गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं. उनके दोनों पैरे के घुटने से नीचे का हिस्सा अलग करना पड़ता है.

अब्दुलरहमान ने कहा कि वो 10 दिन बाद होश में आते हैं और उन्हें बताया जाता है कि दिल का धड़कना तीन बार अब तक रुक चुका है

अब्दुलरहमान अभी भी अस्पताल में हैं. मेटल प्लेट्स एक हाथ में लगी हुई है, दो उंगलियां ख़राब हो चुकी हैं. साथ ही पेट की कई सर्जरी हो चुकी है. उन्होंने कहा कि दर्द लगातार होता है.

वेस्ट बैंक में 7 अक्टूबर के बाद से हिंसा बढ़ गई है. इसराइल का कहना है कि हमारा मक़सद हमारे देश में जानलेवा हमलों को रोकना है. हमले में सैकड़ों फ़लस्तीनी मारे गए हैं.

image Family photo अब्दुलरहमान को अपने रोज़ के काम करने के लिए अपने भाई की मदद की ज़रूरत पड़ती है

अब्दुलरहमान हमले से पहले दूसरे लोगों की तरह सामान्य जीवन जी रहे थे. उनका जीवन सुबह की प्रार्थना, दोस्तों के साथ नाश्ता, काम में पिता की मदद और भुट्टा बेचते हुए बीतता था.

लेकिन अब वो हर रोज़ के कामों के लिए जैसे कि बाथरूम जाने के लिए अपने भाई पर निर्भर हो गए हैं. उन्हें उनकी मां खाना खिलाती हैं.

बीबीसी ने हमले के बाद आईडीएफ से संपर्क साधा था. इस दौरान आईडीएफ ने कहा था, ''जेनिन क्षेत्र में तैनात मेनाशे ब्रिगेड के बलों पर विस्फोटक फेंके देखे जाने के तुरंत बाद एक आतंकवादी सेल पर एयरक्राफ्ट से हमला किया."

जब उनसे पूछा गया कि क्या वो हथियार लिए हुए थे तो उसने कहा, "कैसे हथियार? मैं घर से तुरंत निकला था. मैं सफेद कपड़े पहने हुए सड़क पर चल रहा था..मैं बस बाहर जा रहा था.”

वो बताते हैं कि मैं सिर्फ ड्राइविंग लाइसेंस बनवाने और एक कार ख़रीदने का सपना देखता था.

"आज मैं किसी बात की चाहत रखता हूं तो वो चलना है."

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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