भारत के उत्तरी हिमालय में एक बर्फीले पहाड़ पर तीन दिनों तक फंसे रहने के बाद ब्रिटिश और अमेरिकी पर्वतारोहियों को बचा लिया गया.
ब्रिटेन की 37 वर्षीय फे जेन मैनर्स और अमेरिका की 31 वर्षीय मिशेल थेरेसा ड्वोरक उत्तराखंड राज्य में जनपद चमोली के चौखंबा-3 चोटी के एक चट्टानी हिस्से पर चढ़ाई कर रहीं थीं.
तभी एक चट्टान गिरने से उनके उपकरणों से जुड़ी रस्सी कट गई और वे 6015 मीटर की ऊंचाई पर फंस गए.
चौखम्बा-3 उत्तर भारत में गढ़वाल हिमालय की एक पर्वत चोटी है. दो हेलीकॉप्टरों की सहायता से इन लोगों की खोज की गई और काफ़ी कोशिशों के बाद छह अक्तूबर को इन पर्वतारोहियों को बचा लिया गया.
BBC बीबीसी हिंदी के व्हॉट्सऐप चैनल से जुड़ने के लिए करें कैसे फंसे बर्फ़ीली चोटी परअमेरिकी पर्वतारोही मिशेल थेरेसा ड्वोरक और ब्रिटेन की फ़े जेन मैनर्स ने बीबीसी हिंदी से अपने अनुभव साझा किए.
दोनों पर्वतारोहियों ने बताया कि वे तीन दिनों तक शून्य डिग्री से कम तापमान में फँसे रहे और मुश्किलों का सामना किया.
इस अभियान में असफल होकर बच निकलने के बाद अभी उनमें थकावट ज़रूर है, मगर वो आत्मविश्वास से भरपूर हैं.
दोनों पर्वतारोहियों ने जल्द ही अगली बार फिर इस अभियान पर जाने की इच्छा जताई है.
अमेरिकी पर्वतारोही मिशेल थेरेसा ड्वोरक ने अभियान के बारे में बताया, “हमारा बेस कैंप तक का ट्रैक बहुत अच्छा था, लेकिन असली अभियान की चढ़ाई मुश्किल थी. उस पहाड़ी पर हमारा फंसना वाक़ई अलग तरह अनुभव था.”
“हम पहाड़ी पर चढ़ाई के चौथे दिन थे और हमने हमारा एक बैग खो दिया, जिसमें हमारा अधिकतर ज़रूरी सामान था. उसके बाद हमारे पास तंबू, कुछ कपड़े, आइस एक्स (कुल्हाड़ी) और सीढ़ी जैसी ज़रूरी चीजें नहीं थीं, जो पहाड़ से उतरने में मदद करतीं."
उन्होंने बताया, "ज़रूरी समान का बैग नीचे गिरने के बाद लगा कि अब हम फंस गए हैं. लेकिन कहीं न कहीं हमें उम्मीद थी कि हमें बचा लिया जाएगा क्योंकि उस दिन सुबह का मौसम ठीक था."
"पहाड़ी पर फँसे रहने के दौरान उस समय हम सोच रहे थे कि हमें जितना सम्भव हो सके नीचे उतर जाना चाहिए या इंतज़ार करना चाहिए. बिना तंबू या शेल्टर के बाहर सोना ही हमारे पास एकमात्र विकल्प था.”
उन्होंने बताया, “हम ये भी सोच रहे थे कि शायद हममें से किसी एक को बेस कैंप तक वापस जाना चाहिए और मदद लानी चाहिए. ठंड और भूख की वजह से हम काफ़ी परेशान थे. हमने कुछ समय इंतज़ार किया, बर्फ़ खाकर काम चलाया और जब मौसम ठीक था तो पहाड़ पर कुछ उतरने की कोशिश भी की. हाँ, एक समय ऐसा भी आया कि जब हमें अपने पास खाने और पानी की कमी महसूस होने लगी थी.”
“इसलिए हमने बर्फ पिघलाकर पानी बनाया और जो कुछ थोड़ा हमारे पास खाने को बचा था उन्हीं जमी हुई चीजों को खाया."
एक समय ऐसा भी आया जब पर्वतारोहियों को लगा कि वे ज़िंदा नहीं बच पाएंगे क्योंकि बिना शेल्टर और कपड़ों के ख़राब मौसम में रात बिता पाना चुनौतीपूर्ण था.
ब्रिटेन की 37 वर्षीय फ़े जेन मैनर्स ने बताया, “हम पहाड़ पर काफ़ी ऊपर तक चढ़ गए थे. उस पहाड़ पर कुछ ढीली चट्टानें जब गिरीं उन्होंने उस रस्सी को काट दिया जिस पर हमारा सारा सामान था. इसलिए बैग काफ़ी दूर गिर गया.”
जहां ये लोग फंसे थे वहां बर्फबारी भी हो रही थी और ठंड और गीलेपन से बचने के लिए दोनों एक-दूसरे के क़रीब रहकर खुद को गर्म किया.
उन्होंने बताया, "हम दो दिन पहाड़ी पर बिता चुके थे. उस समय यही सोच थी कि हमें बस इस स्थिति से बाहर निकलने की कोशिश करनी होगी और कैसे भी नीचे जाना होगा. वह समय हमारे लिये थोड़ा भारी रहा, लेकिन अब हम थोड़ा आराम करने की कोशिश कर रहे हैं.”
मिशेल और फ़े जेन मैनर्स ने बताया, “इस घटना से हमें सबक मिला कि साथ में और लोगों का होना ज़रूरी है. शायद अगले अभियान में हम और लोगों के साथ जाएंगे.”
छह अक्तूबर रविवार सुबह फ़े जेन मैनर्स और मिशेल थेरेसा ड्वोरक को रेस्क्यू किए जाने के बाद दिल्ली रवाना किया गया.
सात अक्तूबर सोमवार को दिल्ली स्थित इंडियन माउंटेनरिंग फाउंडेशन (आईएमएफ़) के समक्ष दोनों पर्वतारोहियों की ब्रीफ़िंग हुई.
आईएमएफ़ के डायरेक्टर कर्नल मदन गुरूँग ने बीबीसी हिंदी को बताया, “जब दोनों महिला पर्वतारोही हमारे सामने आये तब उनको थकान ज़रूर थी मगर उनमें आत्मविश्वास था.”
सर्च ऑपरेशन की मुश्किलों के बारे में मदन गुरूंग ने बताया, “अगले दिन ये दोनों पर्वतारोही थोड़ा नीचे आये और बर्फ़ को पिघलाकर पानी पिया. दोनों पर्वतारोही दो दिन दिनों से हेलीकॉप्टर को आता जाता देख रहे थे, मगर दुर्भाग्यवश मिल नहीं पा रहे थे.”
इसलिए दोनों को बचाए जाने की पूरी उम्मीद थी.
मदन गुरुंग ने कहा, “पर्वतारोहण का यह अभियान काफ़ी मुश्किल माना जाता है. लेकिन यह दोनों बहुत कुशल पर्वतारोही हैं. इन दोनों का अलपाईन क्षेत्र का भी काफ़ी अच्छा अनुभव है. दोनों की अपनी पूरी तैयारी थी इसलिये दोनों ने यह रूट और उस चौखम्बा “थ्री” पहाड़ी को चुना.”
आईएमएफ़ के डायरेक्टर ने बताया, “जब उनसे पूछा गया कि क्या आप अगली बार फिर इस अभियान पर जाना चाहेंगे तो उन्होंने हाँ में जवाब दिया.”
जब दोनों पर्वतारोहियों को चौखम्बा की पहाड़ी से एयर लिफ़्ट गया था तब वह अपने क्लाइंबिंग गियर में ही थे. जिसके बाद वह सीधे दिल्ली ही पहुँचे. उनका सामान वहाँ से अभी आना बाक़ी है.
बचाव अभियान पूरा होने में लगभग 80 घंटे लगे और इसमें भारतीय वायु सेना और उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन बल (एसडीआरएफ़) शामिल थे.
चमोली ज़िले के डीएम संदीप तिवारी ने बीबीसी को बताया, “यह ऑपरेशन इसलिए भी बहुत अहम था क्योंकि दो विदेशी यहाँ फँसे हुए थे.”
“आईएमएफ़ की तरफ़ से हमसे अनुरोध के अगले ही दिन दो हेलीकॉप्टर खोज के लिए भेज दिए गए थे, मगर दुर्भाग्यवश वह ढूँढे नहीं जा सके.”
सेना के पीआरओ लेफ़्टिनेंट कर्नल मनीष श्रीवास्तव ने बताया, “खोज में मदद के लिए सबसे पहले एमआई-17 भेजा गया था लेकिन वह अधिक नीचे नहीं जा सकता था. जिसके बाद दो हेलीकॉप्टर को खोज अभियान में लगाया गया. लेकिन फिर भी पता नहीं चल पाया.”
पांच अक्तूबर शनिवार को एक फ्रांसीसी पर्वतारोहण दल, जो चौखंबा-3 चोटी पर चढ़ने का प्रयास कर रहा था, उसने फंसे हुए पर्वतारोहियों का पता लगाया और बचाव अधिकारियों को उनकी लोकेशन भेजी.
वो कहते हैं, "लेकिन उस दिन रात हो गई थी इसलिये उस दिन पर्वतारोहियों को लेने जाना संभव नहीं था. छह अक्तूबर रविवार को लगभग सुबह साढ़े सात बजे हेलीकॉप्टर उन्हें लेने निकला."
पुलिस महानिरीक्षक, एसडीआरएफ रिधिम अग्रवाल ने बताया, "ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी और दुर्गम रास्तों की चुनौतियों के बावजूद, हमारी टीम ने सर्च ऑपरेशन को चलाया. दोनों पर्वतारोहियों को एयरलिफ्ट कर जोशीमठ हेलीपैड पर पहुँचाया गया.”
स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फोर्स के कमांडेंट अर्पण यदुवंशी ने बताया, “इस मिशन के लिए 11 विशेषज्ञों की एक टीम तैनात की गई थी. घटना स्थल 6,200 मीटर पर था, और हमारी टीम 4,900 मीटर पर स्थित एक अग्रिम बेस कैम्प से ऑपरेट कर रही थी.”
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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