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ट्राम, डबल डेकर बस से लेकर चांदनी चौक घंटाघर तक... दिल्ली की वो पुरानी यादें जो समय के साथ गुम हो गईं

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नई दिल्ली: दिल्ली 'दिल वालों' की है। दिल्ली सदियों पुराना इतिहास संजोए हुए है। मुगलों से लेकर अंग्रेजी हुकूमत ने यहां राज किया। आज भी पुरानी दिल्ली की गलियों में पुरानी हवेलियां और इमारतें उस वक्त की यादों को समेटे हुए दिख जाती हैं। लालकिला, इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन जैसी इमारतें तो आज भी मौजूद हैं, जिन्हें हर कोई जानता है। देश की राजधानी दिल्ली मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में भी काफी विकसित शहर था। आज हम दिल्ली की उन खास यादों के बारे में बता रहे हैं, जो अब इतिहास बन चुकी हैं। अगर ये चीजें आज भी होती तो दिल्ली और ज्यादा खूबसूरत होती।
1. कभी दिल्ली में चलती ट्राम image

क्या आप जानते हैं कि दिल्ली में पहले ट्राम चला करती थी। कोलकाता की तरह यहां भी ट्राम सर्विस थी, जिससे लोग एक जगह से दूसरी जगह सफर किया करते थे। दिल्ली में ट्राम सेवा की शुरुआत 6 मार्च 1908 को हुई थी। इसे ब्रिटिश हुकूमत ने शुरू किया था। साल 1903 में दिल्ली दरबार के लिए साफ-सफाई के दौरान शहर में बिजली आई थी और इसके बाद ही ट्राम सेवा शुरू हुई। साल 1921 में ट्राम सेवा अपने चरम पर थी, उस समय 15 किलोमीटर लंबे ट्रैक 24 ट्राम चलती थीं। ट्राम से जामा मस्जिद, चांदनी चौक, चावड़ी बाज़ार, कटरा बदियान, लाल कुआं, सब्ज़ी मंडी, सदर बाजार, पहाड़गंज, अजमेरी गेट, बारा हिंदू राव, और तीस हजारी जैसे इलाके जुड़े थे। पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की बारात में शामिल होने वाले कई बाराती भी ट्राम से ही गए थे। 1930 के दशक में ट्राम सेवा को डीटीसी को सौंप दिया गया था। ट्राम का डिपो श्रद्धानंद बाजार के पीछे हुआ करता था।


2. दिल्ली की सड़क पर दौड़ती थी डबल डेकर बस image

दिल्ली की सड़कों पर कभी डबल डेकर बसें चलती थीं। ये बस डीटीसी की ही थीं, इन बसों की शुरुआत 1970 के दशक में हुई थी। इन बसों को ट्रेलर बस भी कहा जाता था। इन बसों में चालक का केबिन यात्रियों के डेक से अलग होता था। इन बसों में दोनों मंजिलों पर यात्रियों के बैठने की व्यवस्था थी। 60 के दशक में डबल डेकर बसों का किराया 5 पैसे था। स्टूडेंट पास का किराया 12.50 रुपये था। दिल्ली में डीजल बसों पर पाबंदी के बाद डबल डेकर बसों को बंद कर दिया गया था। सीएनजी बसों के आने के बाद भी डबल डेकर बसों का संचालन शुरू नहीं किया गया क्योंकि इनकी रफ्तार बहुत कम थी।


3. चांदनी चौक का घंटाघर image

दिल्ली के चांदनी चौक में कभी घंटाघर हुआ करता था। इसे नॉर्थब्रुक क्लॉक टॉवर के नाम से भी जाना जाता था। इसे 1868 में ब्रिटिश शासन के दौरान बनाया गया था, और इसकी कुल लागत 22,134 रुपये थी। इस घंटाघर को दिल्ली के प्रसिद्ध स्थानों में से एक माना जाता था और यह मलका युत के सामने, सड़क के बीच में स्थित था। यह घंटाघर ब्रिटिश वास्तुकला का प्रतीक था और एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र था। हालांकि, समय के साथ, यह घंटाघर नष्ट हो गया और अब वहां केवल उसकी यादें बाकी हैं।


4. सफेद रंग का था लालकिला image

दिल्ली का प्रसिद्ध लालकिला मूल रूप से सफेद रंग का था। इसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ ने 1648 में करवाया था। लालकिले की दीवारें सफेद चूने के प्लास्टर से बनाई गई थीं, इसलिए इसका मूल रंग सफेद था। बाद में, ब्रिटिश शासन के दौरान समय के साथ चूने की परत खराब होने लगी, इसलिए अंग्रेजों ने इसे लाल रंग में रंग दिया। आज लालकिला अपनी लाल बलुआ पत्थर से बनी दीवारों के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन कभी इसका रंग सफेद हुआ करता था। यानी कभी ये लालकिला नहीं 'सफेद किला' था।


5. लालकिले के बगल बहती थी यमुना image

पिछले साल दिल्ली में बाढ़ के बाद यमुना का पानी लालकिला तक पहुंच गया था। ये नजारा सबने देखा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक जमाने में यमुना लालकिले के पास से होकर गुजरती थी। लालकिला को शाहजहां ने यमुना के किनारे ही बनवाया था। साल 1648 में पहली बार शाहजहां नाव में बैठकर ही यमुना के जरिए लालकिला आया था। लाल किला में 'यमुना द्वार' नाम से एक दरवाजा भी है। अगर आज भी लालकिले के ठीक पीछे यमुना बहती, तो नजारा कुछ और ही होता।

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