धनबादः झारखंड विधानसभा चुनाव में देश की कोयला राजधानी झरिया में इस बार भी फिर देवरानी और जेठानी के बीच महामुकाबला होने की संभावना है। ऐसे तो यह मुकाबला कांग्रेस और भाजपा बीच रहता है। पर इन दोनों पार्टी के प्रत्याशी एक ही घराने से हैं। वह घराना है ‘सिंह मेंशन’ लंबे समय से धनबाद की झरिया विधानसभा सीट पर बाहुबली सूर्यदेव सिंह का वर्चस्व रहा है। रागिनी और पूर्णिया नीरज सिंह के बीच फिर होगा मुकाबलाबीजेपी की टिकट से संजीव की पत्नी रागिनी सिंह यहां से चुनाव लड़ सकती है। 2019 के चुनाव में भी इन्हीं दोनों देवरानी जेठानी के बीच मुकाबला हुआ था। जिसके बाद दोनों के बीच कांटे की टक्कर हुई थीए जिसमे पूर्णिमा सिंह को 44599 मत मिले थे। जबकि रागनी सिंह को 39686 मत प्राप्त हुए। जबकि अन्य दल के लोग कहीं से इन दोनो के मुकाबले खड़े नहीं हो पाए। इस बार भी 2024 के विधानसभा चुनाव में देवरानी और जेठानी ही आमने-सामने होंगी। कयास लगाया जा रहा है कि बीजेपी के रागनी सिंह इस बार कांग्रेस के पूर्णिमा सिंह पर भारी पड़ सकती हैं। क्योंकि पिछली बार नीरज सिंह की हत्या के बाद सहानभूति वोट पूर्णिमा सिंह को मिला था। जिस वजह से वह चुनाव जीत गईं थीं। पर झरिया के लोगों को पानी उपलब्ध कराने के अपने वादे में वह सफल नहीं हो सकी। उसने वादा आई था की झरिया के लोगों के पानी की समस्या को दूर करेंगी। पर यह वादा अब तक पूरा नहीं हुआ। लोकसभा चुनाव 2024 में झरिया विधानसभा सीट से बीजेपी को बढ़तलोकसभा चुनाव 2024 में धनबाद संसदीय क्षेत्र के झरिया विधानसभा सीट से बीजेपी प्रत्याशी को करीब 38 हजार वोटों से बढ़त हासिल हुई। झरिया क्षेत्र से बीजेपी प्रत्याशी ढुल्लू महतो को 96028 वोट मिले, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अनुपमा सिंह 58870 वोट मिले। सूर्यदेव सिंह का परिवार बीजेपी तो बच्चा सिंह के परिजन कांग्रेस समर्थकसूर्यदेव सिंह का परिवार बीजेपी के समर्थक हैं तो सूर्यदेव के दूसरे भाई बच्चा सिंह का परिवार कांग्रेस समर्थक रहा है। सूर्यदेव सिंह के बाद झरिया की विधायक उनकी पत्नी कुंती देवी बनीं। बाद में कुंती सिंह के पुत्र संजीव सिंह झरिया के विधायक बने। फिलहाल संजीव सिंह अपने चचेरे भाई और धनबाद के पूर्व डिप्टी मेयर नीरज सिंह की हत्या के आरोप में जेल में बंद हैं। वर्तमान में कांग्रेस के टिकट पर नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा सिंह झरिया की विधायक हैं। पूर्णिमा नीरज ने पति की मौत के बाद हार का लिया बदलाझरिया विधानसभा सीट से वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में संजीव सिंह ने अपने चचेरे भाई और कांग्रेस प्रत्याशी नीरज सिंह को पराजित किया। लेकिन इस बीच नीरज सिंह की हत्या कर दी गई। नीरज सिंह की हत्या में संजीव सिंह का नाम आया, जिसके बाद विधायक रहने के दौरान ही उनकी गिरफ्तारी हुई और वो अभी जेल में है। इस बीच वर्ष 2019 के चुनाव में बीजेपी ने संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को उम्मीदवार बनाया, जबकि कांग्रेस ने दिवंगत नीरज सिंह की पत्नी पूर्णिमा नीरज सिंह को टिकट दिया। पूर्णिमा सिंह ने वर्ष 2014 में अपने पति की हार का बदला संजीव सिंह की पत्नी से लिया। वर्ष 2019 में झरिया विधानसभा चुनाव परिणाम वर्ष 2014में झरिया विधानसभा चुनाव परिणाम वर्ष 2009 में झरिया विधानसभा चुनाव परिणाम झरिया में पांच दशक से सूर्यदेव सिंह के परिवार का दबदबा झरिया विधानसभा सीट 1967 में अस्तित्व में आया। पहले चुनाव में कांग्रेस के एसआर प्रसाद को जीत मिली। लेकिन 1977 से सिंह मेंशन के सूर्यदेव सिंह का इस सीट पर कब्जा हो गया। वो लगातार चार बार झरिया से चुनाव में विजयी रहे। जबकि एक बार उनके भाई बच्चा सिंह, दो बार पत्नी कुंती देवी, एक बार पुत्र संजीव सिंह ने जीत हासिल की। अभी कांग्रेस विधायक पूर्णिया नीरज सिंह का भी इसी परिवार से दूर का रिश्ता है। झरिया मे 1967 से 2019 तक निर्वाचित विधायक पेयजल और विस्थापन हर बार रहता है झरिया का बड़ा मुद्दा लंबे समय से झरिया वासियों के लिए पेयजल एक बड़ी समस्या रही है। यहां चारांे तरफ कोयले की खान और इस कोयले की खान में लगी आग की वजह से यहां के भूगर्भ का जलस्तर काफी नीचे है। जिस वजह से यहां पानी की घोर किल्लत रहती है। हर बार चुनाव के समय सभी पार्टी का यह एक बड़ा मुद्दा भी रहता है। सभी दल के प्रत्याशी पानी दिलाने के नाम पर ही चुनाव में वोट मांगते हैं। फिर चुनाव जीत जाने के बाद सब भूल जाते है। फिर समस्या ज्यों का त्यों बनी रहती है। झरिया का 85 प्रतिशत क्षेत्र भूतिगत आग से प्रभावितदूसरा सबसे बड़ा मुद्दा झरिया का विस्थापन है। झरिया के 85 फीसद का भू भाग अग्नि प्रभावित क्षेत्र है। जहां सांस लेना भी लोगों के लिए काफी मुश्किल भरा होता है। ऐसे स्थान पर जान जोखिम में डालकर लाखों लोग रहने को मजबूर हैं। इन लोगों को सुरक्षित स्थान पर पुनर्वास कराने के नाम पर भी हर बार इनसे वोट मांगा जाता है। पर चुनाव जीतते ही नेता अपने वादों से मुकर जाते हैं। इस बार भी झरिया का मुख्य मुद्दा पानी और विस्थापन ही होगा। झरिया का विधायक कौन बनेगा? मजदूर संगठनों की बड़ी भूमिकाकोयला राजधानी होने की वजह से झरिया के ज्यादातर वोटर मजदूर हैं, और इन्ही मजदूरों के दम पर झरिया में राजनीति की जाती है। ऐसे तो झरिया के अलग अलग कोयला खदानों में कई यूनियन के लोग सक्रिय है। पर इसमें जनता मजदूर संघ का दबदबा काफी है। जनता मजदूर संघ की स्थापना सूर्यदेव सिंह के समय की गई थी। इससे पहले मासस और भाकपा माले के यूनियन का वर्चस्व कोयला क्षेत्र में काफी था। फिर समय बदला और ज्यादातर मजदूर सूर्यदेव सिंह के यूनियन जनता मजदूर संघ से जुड़ते गए। यही मजदूर यूनियन सिंह मेंशन परिवार को हर बार विधायक बनाते रहे हैं। जनता मजदूर संघ दो फाड़ में बंटामौजूदा समय में जनता मजदूर संघ दो फाड़ में बंटा हुआ है। दरअसल सूर्यदेव सिंह की मौत के बाद उनके भाई बच्चा सिंह ने एक नया यूनियन बनाया। जिसका नाम भी जनता मजदूर संघ बच्चा गुट रखा। इस यूनियन में वही मजदूर थे जो पहले सूर्यदेव सिंह के यूनियन में थे। फिर सूर्यदेव सिंह के बनाए यूनियन को उनकी पत्नी कुंती सिंह ने अपने नाम से जोड़ कर अलग कर लिया। अब यह संगठन जनता मजदूर संघ कुंती गुट के नाम से जाना जाता है। और इसी यूनियन से जुड़े मजदूर चुनाव की दशा और दिशा को तय करने में अहम भूमिका निभाते हैं। जनता मजदूर संघ कुंती गुट के दम पर ही वर्ष 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी प्रत्याशी कुंती देवी के पुत्र संजीव सिंह ने चुनावी मैदान में कांग्रेस प्रत्याशी नीरज सिंह को 34 हजार से अधिक मतों से पराजित किया था। बाद में नीरज सिंह की हत्या कर दी गई। जिसका आरोप संजीव सिंह पर लगा और वो विधायक रहते हुए ही जेल चले गए। अब इस विधान सभा सीट पर इन्हीं दोनों की पत्नियां चुनाव मैदान में है। अब 2024 के चुनाव में जनता किसे अपना विधायक बनाएगी यह चुनाव के बाद में ही पता चल पाएगा।
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