Prashant Kishor's Political Plan: प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी अब चुनावी रणभूमि पर उतरने के लिए तैयार है। बिहार की सियासत में एक और राजनीतिक दल की आधिकारिक एंट्री हो चुकी है। क्या आप जानते हैं कि पीके की पार्टी कितनी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का प्लान बना रही है? उनके इस फैसले से किस पार्टी को फायदा पहुंचेगा और किसे कितना नुकसान हो सकता है, आपको सारा समीकरण समझना चाहिए।
चुनाव रणनीतिकार से नेता बने प्रशांत किशोर ने बुधवार को ‘जन सुराज पार्टी’ के नाम से अपना राजनीतिक दल गठित करने की घोषणा कर दी। पटना के वेटरनरी कॉलेज मैदान में बुधवार को आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान किशोर ने यह घोषणा की। इस दौरान पूर्व केंद्रीय मंत्री देवेंद्र प्रसाद यादव, राजनयिक से नेता बने पवन वर्मा और पूर्व सांसद मोनाजिर हसन सहित कई जानी मानी हस्तियां मौजूद थीं।
बिहार में तैयार हुआ नया राजनीतिक विकल्प
किशोर ने चंपारण से राज्य की तीन हजार किलोमीटर से अधिक लंबी ‘पदयात्रा’ शुरू करने के ठीक दो साल बाद इस पार्टी का गठन किया, जिसका उद्देश्य लोगों को प्रदेश में एक ‘नया राजनीतिक विकल्प’ देकर उन्हें संगठित करना है। चंपारण से ही महात्मा गांधी ने देश में पहला ‘‘सत्याग्रह’’ शुरू किया था।
बिहार की कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगी जन सुराज पार्टी?
इसी साल सितंबर के महीने में राजनीतिक रणनीतिकार की भूमिका से स्वयं राजनेता की भूमिका में आए प्रशांत किशोर ने अपने चुनावी रणनीति के बारे में बताया था। उस वक्त उन्होंने बताया था कि ‘जन सुराज’ एक महीने से भी कम समय में राजनीतिक पार्टी बनने जा रही है और आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीट पर चुनाव लड़ेगी। पीके ने कहा था कि 'मैं स्पष्ट कर दूं कि जन सुराज सभी 243 सीट पर चुनाव लड़ेगी, इससे एक भी कम नहीं।'
सत्ता में आते ही प्रशांत किशोर की पार्टी हटाएगी शराबबंदी
इंडियन पॉलिटिकल एक्शन कमेटी (आईपीएसी) के संस्थापक किशोर पूर्व में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविंद केजरीवाल जैसे विभिन्न नेताओं के चुनाव अभियानों को संभाल चुके हैं। उन्होंने बिहार में शराबबंदी कानून के बारे में कहा था कि पार्टी की सरकार बनने के एक घंटे के भीतर प्रदेश से शराब पर लगी रोक हटा दी जाएगी।
बिहार में शराबबंदी कानून के आलोचक रहे आईपीएसी संस्थापक ने आरोप लगाया था कि यह नीतीश कुमार की ओर से दिखावा के अलावा और कुछ नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि इस कानूर ने शराब की अवैध ‘होम डिलीवरी’ के लिए रास्ता साफ किया। इस कानून के जरिए राज्य को आबकारी शुल्क के माध्यम से अर्जित होने वाले 20,000 करोड़ रुपये से वंचित किया जा रहा है। इसकी आड़ में नेता और नौकरशाह अपनी हिस्सेदारी पा रहे हैं।
भाजपा, कांग्रेस और राजद के प्रति क्या है पीके की राय?
प्रशांत किशोर का मानना है कि कांग्रेस ने लालू प्रसाद के गलत कार्यो के प्रति आंखें मूंद लीं क्योंकि उनकी राजद पिछली संप्रग सरकार की अहम सहयोगी थी। इससे उन्हें सत्ता में बने रहने में मदद मिली, हालांकि राजद के पास कभी भी विधानसभा में बहुमत नहीं था। इसके अलावा बिहार की दुर्दशा के लिए प्रशांत किशोर की नजर में नीतीश कुमार और उनके पूर्ववर्ती लालू प्रसाद को मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं, हालांकि उनका मानना ये भी है कि कांग्रेस और भाजपा भी इसमें दोषी हैं।
'नीतीश का साथ देने से कांग्रेस जैसा होगा भाजपा का हश्र'
प्रशांत किशोर का मानना है कि "शारीरिक और मानसिक रूप से" स्वस्थ नहीं होने के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का समर्थन करने के लिए बिहार में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का वही हश्र होगा, जो राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद को "जंगल राज" लागू करने में मदद के लिए कांग्रेस का हुआ था। पीके ये तक दावा कर चुके हैं कि कि लोग दोनों प्रतिद्वंद्वी गठबंधनों को उखाड़ फेंकेंगे, जिन्होंने 30 साल से अधिक समय तक राज्य को सबसे गरीब और पिछड़ा बना कर रखा है, ताकि उनकी (किशोर की) पार्टी को 243 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत मिल सके।
इसी साल हुए लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद प्रशांत किशोर ने कहा था कि 'लोगों ने हाल के लोकसभा चुनाव में स्पष्ट संदेश दिया है कि वे "अहंकार" बर्दाश्त नहीं कर सकते या किसी भी नेता को उन्हें हल्के में लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।' उनका इशारा साफ है कि उन्हें और उनकी जन सुराज पार्टी को हल्के में लेने की गलती नहीं करनी चाहिए।
किन-किन मुद्दों पर मुख्य रूप से फोकस कर रहे हैं पीके?
प्रशांत किशोर की पार्टी का नाम तय हो चुका है, अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं। आने वाले एक साल पीके और उनकी पार्टी के लिए बेहद अहम होंगे। शराबबंदी, बेरोजगारी, महंगाई और जनहित से जुड़े मुद्दों की बात करने वाले प्रशांत किशोर ने अपनी कमर कस ली है। वो भले ही ये दावा कर रहे हैं कि लालू और नीतीश दोनों को उनकी पार्टी पटखनी दे देगी, लेकिन ये इतना आसान नहीं है। प्रशांत किशोर को बिहार की जनता स्वीकार करती है या फिर सिरे से नकार देती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।