दिल्ली के पूर्व सीएम और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने 22 सितंबर को जंतर-मंतर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत से पाँच सवाल पूछे.
दरअसल ये सवाल से ज़्यादा मोहन भागवत से पीएम मोदी के साथ गृह मंत्री अमित शाह की शिकायत ज़्यादा थी.
केजरीवाल ने अपने भाषण में कई बार भागवत का नाम लिया और बीजेपी-संघ के रिश्ते पर भी बात की.
अरविंद केजरीवाल ने मोहन भागवत से पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को लेकर सवाल तब पूछा है जब संघ और बीजेपी के संबंधों में कड़वाहट की ख़बरें चल रही हैं.
भागवत ने बीते दिनों ऐसे कई बयान दिए, जिसके बाद ये कहा गया कि भागवत पीएम मोदी को निशाने पर ले रहे हैं. हालांकि भागवत ने अपने बयानों में पीएम मोदी का नाम नहीं लिया था.
केजरीवाल ने अपने सवालों से बीजेपी-संघ के बीच चल रही अटकलों को कुरेदने की कोशिश की. ऐसे में सवाल ये है कि आख़िर केजरीवाल पीएम मोदी की शिकायत मोहन भागवत से क्यों कर रहे हैं?
Getty Images दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल केजरीवाल ने मोहन भागवत पूछे ये पाँच सवालबीजेपी नेता कपिल मिश्रा ने केजरीवाल के सवालों पर कहा, ''बीजेपी-संघ से सवाल पूछने की बजाय केजरीवाल को दिल्ली की जनता को जवाब देना चाहिए. जन लोकपाल का क्या हुआ? यमुना साफ़ क्यों नहीं हुई? हवा में प्रदूषण क्यों है? सड़कें टूटी हुई क्यों हैं? अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी क्यों नहीं किया गया?''
दिल्ली की सीएम कुर्सी छोड़ने के बाद अरविंद केजरीवाल ने अपने पहले 'जनता की अदालत' में संघ-बीजेपी को निशाने पर लिया.
मगर अतीत में ऐसे कई मौक़े रहे हैं, जब केजरीवाल ने अपने बयानों से बीजेपी के सामने असमंजस की स्थिति पैदा कर दी थी. मई 2024 में जब केजरीवाल तिहाड़ जेल से कुछ दिनों के लिए ज़मानत पर बाहर आए थे तब भी अरविंद केजरीवाल ने यूपी के मुख्यमंत्री योगी को लेकर दावा किया था.
केजरीवाल ने कहा था कि चुनाव के दो महीने बाद यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा.
अपनी चुनावी रैलियों में केजरीवाल ने ये भी कहा था, ''अगले साल पीएम मोदी 75 साल के हो रहे हैं. 2014 में पीएम मोदी ने ख़ुद नियम बनाया था कि जो 75 साल का हो जाएगा, उसे रिटायर कर दिया जाएगा.''
केजरीवाल के इस बयान का तब ये असर हुआ था कि अमित शाह को 75 की उम्र में रिटायरमेंट वाली बात पर सफाई देनी पड़ी थी.
शाह ने कहा था, ''मोदी जी ही टर्म पूरा करेंगे और आगे देश का नेतृत्व करते रहेंगे. 75 की उम्र में रिटायरमेंट वाली बात बीजेपी के संविधान में नहीं लिखी है.''
पीएम मोदी ने भी एक चुनावी रैली में तब जनता को अपना वारिस बताया था.
दरअसल 2014 के बाद से ऐसे कई नेता रहे, जिनकी उम्र जब 75 को पार हुई तो उन्हें किनारे कर दिया गया. इसमें लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे कुछ बड़े नाम भी शामिल हैं.
विपक्ष का आरोप रहता है कि केंद्र की मोदी सरकार केंद्रीय एजेंसियों का ग़लत इस्तेमाल करके अपने विरोधियों को निशाना बना रही है. हालांकि बीजेपी ऐसे आरोपों से इनकार करती रही है.
हाल ही में केजरीवाल को ज़मानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, ''सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की छवि तोड़नी चाहिए और उसे दिखाना चाहिए कि वह पिंजरे में बंद तोता नहीं है.''
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वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी ने बीबीसी हिंदी से कहा, ''जैसा कि केजरीवाल ने कहा है कि बच्चा भटकता है तो अभिभावक से सवाल पूछे जाने की ज़रूरत है. अगर इसके राजनीतिक मायने पूछे जाएं तो यही पांच सवाल हैं तो आरएसएस को भी परेशान कर रहे हैं. पार्टियों को तोड़ा जाना, अजित पवार जैसे नेताओं को लाने से संघ में नाराज़गी रही. महाराष्ट्र में इसे लेकर बहुत बवाल है. संघ ये मानता है कि इससे बीजेपी को फ़ायदा नहीं हुआ.''
मई 2024 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 'इंडियन एक्सप्रेस' को दिए इंटरव्यू में कहा था, "शुरू में हम अक्षम होंगे, थोड़ा कम होंगे. आरएसएस की ज़रूरत पड़ती थी. आज हम बढ़ गए हैं. सक्षम हैं तो बीजेपी अपने-आपको चलाती है."
जानकारों का कहना है कि नड्डा के इस बयान से संघ में काफ़ी नाराज़गी देखने को मिली.
नीरजा चौधरी कहती हैं, ''अभी तक इस बयान को ख़ारिज नहीं किया गया है कि नड्डा ने कहा हो कि उनके बयान को ग़लत तरह से लिया गया. कोई सफ़ाई देने की कोशिश नहीं हुई. संघ में बीजेपी और मोदी के काम करने के तरीके को लेकर नाराज़गी है.''
पंजाब यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार ने कहा, ''आरएसएस का विरोध जिस तरह से राहुल गांधी करते हैं, वैसे अरविंद केजरीवाल नहीं करते हैं. केजरीवाल चाहते हैं कि आरएसएस बचा रहे और उसकी शुचिता से समझौता न हो. जिस तरह से अरविंद केजरीवाल शिकायत कर रहे थे, उससे तो यही लग रहा था कि वह बहुत चिंतित हैं और कह रहे हैं कि बीजेपी आपकी बात नहीं मान रही है तो मैं हूँ न.''
वो बोले, ''अरविंद केजरीवाल ने जानबूझकर ऐसा वक़्त चुना है जब बीजेपी और संघ में अनबन की ख़बरें हैं. हरियाणा में विधानसभा चुनाव है. अरविंद केजरीवाल आरएसएस को बता रहे हैं कि बीजेपी में कोई भी शामिल हो जा रहा है. इससे उसकी पवित्रता प्रभावित हुई है. यह आरएसएस के लिए यह बहुत सहज स्थिति नहीं है.''
नीरजा चौधरी कहती हैं, ''संघ के अंदर जो सवाल थे, केजरीवाल ने सार्वजनिक तौर पर वो सवाल पूछ लिए हैं. अब संघ को जवाब देना होगा. क्या वो एजेंसियों के इस्तेमाल, सरकार को गिराए जाने या 75 पार जैसे मुद्दों पर मोदी को समर्थन देंगे या ख़ारिज करेंगे? केजरीवाल ने मुद्दा स्पॉटलाइट में ला दिया है. इससे अंदरुनी मतभेद और पैने हो जाएंगे. केजरीवाल विपक्षी नेता के तौर पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.''
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद 18 जुलाई को बोले थे, ''मनुष्य है पर मानवता नहीं है, वो पहले मनुष्य बन जाए... फिर मनुष्य अलौकिक, सुपरमैन, अति मानव बनना चाहता है. वहां रुकता नहीं. फिर उसे लगता है कि देवता बनना चाहिए. लेकिन देवता कहते कि हमसे तो भगवान बड़ा है. तो फिर वो भगवान बनना चाहता है. भगवान कहते हैं कि मैं तो विश्वरूप हूं. वहां भी कुछ रुकने की जगह है या वहां से आगे कुछ है?''
इसे पीएम मोदी के लिए संकेत के तौर पर देखा गया.
दरअसल चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने एक इंटरव्यू में कहा था- मुझे परमात्मा ने भेजा है.
ऐसे में क्या केजरीवाल संघ और बीजेपी की दूरियों की अटकलों को भुनाने की कोशिश कर रहे हैं?
नीरजा चौधरी कहती हैं, ''जो सामने है और जो नहीं है, केजरीवाल उन दूरियों को भी भुनाने की कोशिश कर रहे हैं. संघ अजित पवार को लेकर नाराज़ है. कई और लोग हैं, जो कुछ दिन पहले आए और आप राज्यसभा टिकट दे रहे हैं. संघ को भी कोने में डाल दिया है. संघ नाराज़ है पर एक्शन क्या ले रहा है. अब देखते हैं कि बीजेपी और संघ क्या करते हैं.''
हरियाणा, जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव जल्द होने हैं. आने वाले महीनों में महाराष्ट्र, झारखंड और दिल्ली में भी चुनाव होने हैं.
क्या केजरीवाल के बयानों से जनता के बीच असर होगा?
नीरजा चौधरी ने कहा, ''बीजेपी-संघ से जुड़े ये सवाल जनता के बीच भी खड़े हैं. असर तो जनता के बीच भी होगा. इस मामले में परिवर्तन आए या ना आए, मगर जो छिपे सवाल थे, वो अब सामने आ गए हैं. ये बातें अब नैरेटिव का हिस्सा बन गई है. संघ इन सवालों को अगर खारिज नहीं करता है तो इनका बचाव करना होगा.''
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'द आरएसएस- आइकन्स ऑफ इंडियन राइट' किताब के लेखक और वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने बीबीसी से इस बारे में बात की.
नीलांजन मुखोपाध्याय ने कहा, ''संघ परिवार के अंदर बीते 10 साल से जो शांति दिख रही थी, अब वहां थोड़ी उथल-पुथल हुई है. चाहे नड्डा के बयान के बाद से या चुनावी अभियान के दौरान. इसी में केजरीवाल भी घी डाल दे रहे हैं कि आग भड़कती रहे. ये राजनीतिक रणनीति है.''
केजरीवाल के सवाल पूछे जाने की रणनीति पर नीलांजन मुखोपाध्याय बोले, ''ये राजनीति में होता रहा है. जहां तक मुझे याद है कि राजीव गांधी सरकार में थे, तब हर दिन विश्वनाथ प्रसाद सिंह पूछते थे. ये आम रणनीति है कि ऐसा कोई सवाल पूछ लो जिसका जवाब मिलेगा नहीं. दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर चलाना पुरानी राजनीतिक रणनीति रही है.''
नीलांजन मुखोपाध्याय कहते हैं, ''भागवत के चार बयान आ चुके हैं. इनमें मोदी का नाम नहीं लिया गया, पर किसी के मन में शक नहीं है कि ये किसके बारे में बात कर रहे हैं.''
बीते दिनों नितिन गडकरी ने कहा था, ''मुझसे किसी नेता ने कहा कि अगर आप प्रधानमंत्री बनते हैं तो हम लोग आपका समर्थन करेंगे.''
मुखोपाध्याय इस बयान की ओर ध्यान दिलाते हुए कहते हैं, ''अब तक पार्टी के अंदर ये माहौल था कि सब जी हुजूरी में लगे हुए थे. उसमें थोड़ा फेरबदल हुआ है. आप कई राज्य में देखेंगे कि बीजेपी के अंदर से थोड़ी आवाज़ बाहर आने लगी है. नितिन गडकरी को ये कहने की क्या ज़रूरत थी कि विपक्ष के लोग प्रधानमंत्री बनाने के लिए आए थे. ये साफ-साफ बोल रहे हैं कि आप पीएम उम्मीदवार नहीं मानते हैं, पर लोग मानते हैं. ताकि जब किसी विकल्प की बात चले तो उनके नाम पर भी बात हो.''
केजरीवाल के बयान पर संघ की ओर से कैसी प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा सकती है?
मुखोपाध्याय कहते हैं, ''संघ इस बयान को नज़रअंदाज़ करेगा. उस तरह से संघ का कोई प्रवक्ता है नहीं. अगर किसी कार्यक्रम में किसी पत्रकार ने सवाल पूछा, तब जो दिमाग में आएगा वो कह देंगे.''
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कांग्रेस के ख़िलाफ़ आंदोलन करने के बाद आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ था. केजरीवाल शुरू में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ और आम लोगों के हित से जुड़ी राजनीति करने के दावे करते नज़र आते रहे थे.
मगर 2019 के बाद से केजरीवाल हिंदुत्व की राजनीति करते नज़र आए हैं. बीते कुछ सालों में दिल्ली में कई जगहों पर सुंदरकांड करवाने की बात हो या तिरंगा लगवाने की बात हो.
केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेता ख़ुद को ''कट्टर देशभक्त'' की छवि वाला पेश करते रहे हैं.
2021 में केजरीवाल ने एलान किया था कि उनकी सरकार का मकसद ''राम राज्य'' लाना है.
केजरीवाल ने कहा था, ''भगवान राम अयोध्या के राजा थे. भगवान राम के शासन में जनता संतुष्ट थी क्योंकि सारी बुनियादी सुविधाएं लोगों की पहुँच में थीं. हम इसे ही राम राज्य कहते हैं. हम दिल्ली में भी यह राम राज्य लाना चाहते हैं.''
दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार आम जनता को तीर्थ यात्रा करवाने के लिए भी भेजती रही है.
जानकारों का कहना है कि ऐसे कई मौक़े हैं, जब केजरीवाल की अगुवाई में आम आदमी पार्टी ने हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी के सुर से सुर मिलाए हैं.
कुछ मौक़ों पर 'आप' बीजेपी से भी कुछ कदम आगे नज़र आई है.
उदाहरण के लिए जब नागरिकता संशोधन क़ानून के तहत पड़ोसी देशों से आए लोगों को नागरिकता देने की बात आई तो 'आप' बीजेपी पर हमलावर रही.
'आप' का कहना था कि अगर बाहर से लोगों को लाकर बसाया जाएगा तो भारतीय नागरिकों के मौक़े छिनेंगे.
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2011 के अन्ना आंदोलन के बाद ही आम आदमी पार्टी बनी थी.
आंदोलन के दौरान ऐसे कई आरोप लगे कि अन्ना हजारे का संबंध संघ के नानाजी देशमुख से रहा. तब केजरीवाल ने इन आरोपों को ख़ारिज किया था.
केजरीवाल ने कहा था- ये कांग्रेस की साजिश है ताकि लोकपाल बिल से ध्यान भटका सके.
बाद के दिनों में केजरीवाल अन्ना हजारे से भी दूर हो गए. बीते सालों में संघ और आम आदमी पार्टी के बीच बयानबाज़ी होती रही.
कहा जाता है कि 2015 विधानसभा चुनाव में संघ इस बात से नाराज़ था कि बीजेपी ने डॉ हर्षवर्धन की बजाय किरण बेदी को सीएम पद का उम्मीदवार क्यों बनाया?
2015 विधानसभा चुनाव में किरण बेदी की अगुवाई में दिल्ली में बीजेपी की हार हुई थी और आम आदमी पार्टी की बड़ी जीत हुई थी.
इससे पहले फरवरी 2014 में संघ विचारक केएन गोविंदाचार्य ने इकोनॉमिक टाइम्स अख़बार से आम आदमी पार्टी को अपना समर्थन देने की बात कही थी.
मगर अब केजरीवाल ने अपने सवालों से बीजेपी और संघ की दूरियों को सामने ला दिया है.
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बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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